गजरौला स्थित टेवा नामक बहुराष्ट्रीय दवा कम्पनी के प्रबंधन और कर्मचारियों का विवाद समाप्त होने को नहीं है इससे जहां इस विशाल इकाई के ठप्प होने का खतरा उत्पन्न हो गया है वहीं प्रत्यक्ष रुप से कई सौ कर्मचारी और परोक्ष रुप से हजारों लोगों के रोजगार पर इसका प्रभाव पड़ेगा। यदि ऐसा हुआ तो इसके लिए टेवा के प्रबंधकों की अयोग्यता और उन आन्दोलनकारी कर्मचारियों की नासमझी उत्तरदायी होगी जो यहां काम मिलने से पूर्व नौकरी की तलाश में भटकते फिर रहे थे। उन्हें यहां की बंद पड़ी श्री एसिड्स, बैस्ट बोर्ड तथा शिवालिक जैसी लगभग आधा दर्जन इकाईयों के बेरोजगार हुए युवकों से सीख लेनी चाहिए तथा कम्पनी को चालू रखते हुए, बेहतर काम के बल पर कम्पनी प्रबंधन का मन जीतने का प्रयास करना चाहिए।
जो लोग श्री एसिड्स लि. आदि इकाईयों में चलते समय नेतागीरी कर रहे थे उनका उद्देश्य प्रबंधतंत्र पर दबाव बनाकर अपना उल्लू सीधा करना था। मजदूरों या कर्मचारियों के हित साधन से उनका कुछ लेना देना नहीं था। यही कारण था कि फैक्ट्री बन्द होने के बाद बेरोजगार हुए मजदूरों को काम दिलाने उनमें से कोई नहीं आया।
हसनपुर रोड पर प्लाईवुड बनाने की कम्पनी में चालू होते ही सीटू की यूनियन बन गयी। वहां ढंग से काम चालू भी नहीं हुआ कि मजदूरों के हक और अधिकारों के बहाने प्रबंधन पर दबाव बनाने वालों की गेट पर नारेबाजी शुरु हो गयी। सीटू का लाल झंडा गेट पर फहरने लगा। जिसे देखते ही पहले बंगाल की एक इकाई में प्रबंधक रह चुके बैस्ट बोर्ड के तत्कालीन प्रबंधक ने कहा था कि अभी कुछ नहीं बिगड़ा यहां से भाग लो। सीटू का झंडा लगने का मतलब है कि अब यह फैक्ट्री बन्द होनी ही है।
बात सच निकली फैक्ट्री साल भर भी नहीं चली और बन्द हो गयी। सारे मजदूर घर बैठ गये। उधर श्री एसिड की ईंट तक बिक गयीं पर सीटू का फटा झंडा वहां आज भी लगा है।
टेवा के प्रबंधन को ऐसा मार्ग खोजने का प्रयास करना चाहिए जिसमें कम्पनी भी चलती रहे और मजदूरों को यह महसूस न हो कि उनके साथ न्याय नहीं किया जा रहा। प्रबंधन का रवैया प्रबंधन जैसा न होकर गैर जिम्मेदाराना अधिक लगता है। उन्हें अपने मातहतों के साथ पारिवारिक सदस्यों जैसा व्यवहार करना चाहिए। इससे दोनों में बेहतर तालमेल और तादात्म्य होगा। देखने में आया है कि प्रबंधतंत्र में कुछ तत्व अपने अधीनस्थों के प्रति बेहद तानाशाह पूर्ण रवैया अपनाते आ रहे हैं। मामूली सी बात पर उन्हें सेवा मुक्त करने की धमकियां दी जाती हैं।
यहां की कई कंपनियों से बेहतर सुविधायें और अच्छा वेतन पाने के वावजूद टेवा के कर्मचारियों में जो असंतोष है उसके मूल में कुछ और है जबकि प्रबंधक कुछ दूसरी ही तस्वीर पेश करते हैं। यहां प्रबंधकीय स्टाफ की कमी, स्टाफ में उचित तालमेल का अभाव तथा सबसे अधिक कम्पनी में इस तरह की समस्या का यथोचित, यथासमय समाधान न खोज पाने वाली प्रतिभा का पूरी तरह अभाव होना टेवा की इस दयनीय हालत के लिए पूरी तरह उत्तरदायी है।
गजरौला के अन्य समाचार पढ़ें