चकनवाला गांव के पास बाहा पार बसे एक दर्जन से अधिक गांव ऐसे हैं जिनका सम्पर्क दूसरे क्षेत्र से बरसात में कट जाता है। साल के बाकी दिनों में एक कैप्सूल पुल के सहारे वे गजरौला और दूसरे स्थानों से जुड़ जाते हैं। पूरी बरसात लगभग चार माह उन्हें नावों का सहारा लेना पड़ता है। लोकसभा चुनाव से पहले मौजूदा सांसद कंवर सिंह तंवर ने वहां का दौरा किया था। दो-तीन सभायें भी कीं। लोगों की दुखती रग को पकड़ा और वादा कर दिया कि वे चुनाव में उन्हें वोट दें, यदि जीते तो सरकार पैसा दे या न दे वे अपने पैसे से पुल बनवा देंगे। वैसे ये लोग ऐसे वादे और दावे दशकों से देखते-देखते थक चुके थे, बहुत से बूढ़े हो चुके थे, बहुत से भगवान को भी प्यारे हो चुके थे, कुछ ने अभी तक एक दो ही नेताओं को सुना था सो कह दिया देख लेते हैं। ये गांव के हैं अपने जैसे ही लगते हैं। हो सकता है कम पढ़ा लिखा आदमी हमारी फरियाद सुन ले। तंवर जीत गये। उसके बाद इधर मुड़कर भी नहीं देखा। इधर ही क्या लोकसभा क्षेत्र में ही आना बन्द कर दिया।
खादर के उपरोक्त बाढ़ग्रस्त गांवों के लगभग सात हजार लोग बदतर हालात में हैं। इस बार वैसे कम बरसात हुई है लेकिन पहाड़ों पर बार-बार बिगड़े हालातों से यहां भी जलस्तर घट-बढ़ जाता है जिससे परेशानी होती है। बीमार महिला और बच्चों के लिए ऐसे में यहां मौजूद झोलाछाप ही भगवान सिद्ध होते हैं। आम जरुरत की चीजें लाने ले जाने के लिए नावों का ही सहारा है। जिसमें समय और शक्ति दोनों की जरुरत पड़ती है। बाढ़ खंड, प्रशासन या सिंचाई विभाग इसमें कुछ भी सहयोग नहीं करता। इसे गांव वाले आपसी सहयोग से अंजाम देते हैं। पशुओं के टीकाकरण आदि के लिए इन गांवों में कोई चिकित्सक तक नहीं जाने को तैयार होता। लोग देसी इलाज के भरोसे रहते हैं। बरसात में बीमारी का खतरा बढ़ जाता है। पशु पालन यहां के कृषकों का प्रमुख सह-व्यवसाय है। लोगों ने यहां शीघ्र ही पक्का पुल बनवाये जाने की मांग की है। उन्होंने सांसद से वादा पूरा करने की मांग की है। यदि ऐसा नहीं करते तो पद से त्यागपत्र दें।
टाइम्स न्यूज गजरौला