शिक्षक कर रहे राजनीति- अधिकारी मौज में

primary school india
अमरोहा जिले के परिषदीय विद्यालयों में शिक्षा का बुरा हाल है। बेसिक शिक्षा में सुधार के नाम पर सरकार द्वारा भारी भरकम बजट खर्च किया जा रहा है। लेकिन इन स्कूलों की शिक्षा व्यवस्था सुधरने के बजाय बद से बदतर होती जा रही है। यही कारण है कि लोग यहां बच्चों को पढ़ाना नहीं चाहते और न ही मोटी रकम खर्च कर निजि स्कूलों में अपने बच्चों को भेज रहे हैं। जहां परिषदीय स्कूलों के अध्यापकों से बहुत कम वेतन पाने वाले अध्यापक बच्चों को परिश्रम के साथ पढ़ाते हैं। सरकार खजाने का एक बड़ा भाग सफेद हाथी बन चुके परिषदीय विद्यालयों पर खर्च कर रही है। यहां सर्व शिक्षा अभियान के तहत भी भारी भरकम राशि व्यय की जा रही है। फिर भी शिक्षा का स्तर खराब होता जा रहा है। अधिकांश नेता राजनीति चमकाने में लगे रहते हैं। पिछले दिनों शिक्षक यूनियन के चुनाव के दौरान गुरु जैसी सम्मानित पदवी प्राप्त गजरौला ब्लाक के इन शिक्षकों ने आपस में मारपीट कर जिस अभद्रता का परिचय दिया उससे शिक्षक वर्ग की मर्यादा को गहरा आघात लगा है। इसी आचरण से पता चल जाता है कि जिले के प्राथमिक  विद्यालयों के ऐसे शिक्षक अपने छात्रों को किस दिशा में ले जा रहे हैं। विभागीय अधिकारी भी आराम से मौज कर रहे हैं। वे भी परिषदीय विद्यालयों में सुधार के बजाय निजि स्कूलों पर शिकंजा कसने की कवायद में जुटे रहते हैं।

विद्यालय में छात्रों की कमी
जिले में चार दर्जन स्कूल ऐसे हैं जहां एक-एक ही अध्यापक है बल्कि एक स्कूल ऐसा भी है जो एक शिक्षामित्र के सहारे ही है। ब्लाक गजरौला के जोगीपुरा गांव के प्राथमिक विद्यालय में केवल एक ही छात्रा पिछले दिन पढ़ने आता था, वह भी कभी-कभी। यह इस विद्यालय की शिक्षा के घटिया स्तर के चलते हुआ। इस गांव के सभी बच्चे निजि स्कूलों में फीस खर्च कर पढ़ रहे हैं। यहां कोई मुफ्रत में भी पढ़ाने को तैयार नहीं।
  जिले के कई स्कूलों में आठ-दस बच्चों पर दो से तीन अध्यापक हैं जबकि कहीं-कहीं पचास-साठ बच्चों पर एक-एक अध्यापक तैनात है। कहीं भी अध्यापकों और बच्चों की संख्या में संतुलन नहीं है।
  यह सारी स्थिति का पता जनपद के खण्ड शिक्षा अधिकारियों और बेसिक शिक्षा अधिकारी तक को है लेकिन कोई भी इस खामी को ठीक करने को तत्पर नहीं है। बेसिक शिक्षा अधिकारी निजि स्कूलों के संचालकों और प्रबंधकों को परेशान करते रहते हैं, लेकिन परिषदीय विद्यालयों की दुर्दशा को सुधारने का प्रयास नहीं करते।

वेतन कई गुना पर पढ़ाई सिफर
कितना बड़ा अन्याय है कि परिषदीय स्कूलों के अध्यापकों को सरकार से बीस से पच्चीस हजार तक वेतन मिल रहा है और तब भी उनके पास पढ़ने वाले बच्चों का अभाव है जबकि निजि संस्थाओं में केवल दो-ढाई हजार रुपयों के वेतन पर पढ़ानेवाले शिक्षकों से पढ़ने वालों की भारी भीड़ है। वजह यही है कि निजि संस्थाओं के अध्यापकों से दस-बारह गुना वेतन लेने के बावजूद परिषदीय स्कूलों में उचित पढ़ाई नहीं होती। कुछ स्कूल इसका विवाद भी हो सकते हैं लेकिन उससे कोई लाभ नहीं। शिक्षा जैसे सबसे महत्वपूर्ण विषय पर न तो सरकार गंभीर है और न ही विभागीय अधिकारी। गंभीर हों भी क्यों लम्बे चैड़े बजट का शिक्षा के नाम पर दुरुपयोग कर उससे लाभान्वित भी तो यही हो रहे हैं।

-टाइम्स न्यूज फीचर.