उत्तर प्रदेश के युवा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने जितना बड़ा अन्याय प्रदेश के शिक्षित युवाओं के साथ किया, ऐसा अन्याय आजादी से लेकर प्रदेश की किसी सरकार या किसी मुख्यमंत्री ने नहीं किया होगा।
प्रदेश के डिग्री कालेजों में विभिन्न विषयों के प्रवक्ताओं की कमी को पूरा करने के लिए डिग्री कालेजों से सेवानिवृत्त प्रवक्ताओं को विभिन्न विषय पढ़ाने हेतु वार्षिक नवीनीकरण की शर्त पर पुनः लगभग 25 हजार रुपये मासिक के निश्चित मानदेय पर नियुक्त किया जा रहा है। जबकि प्रदेश में लाखों उच्च शिक्षा में योग्य अभ्यार्थी बेरोजगार होकर दर-दर की ठोकर खाने को विवश हैं।
यह सेवानिवृत्त प्रवक्ता विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यू.जी.सी.) के शैक्षिक योग्यता मानक के विपरीत हैं क्योंकि यू.जी.सी. ने संबंधित विषय में नेट/स्लेट अथवा पी.एच.डी. को प्रवक्ता के लिए आवश्यक अहर्ता घोषित किया है जबकि सेवानिवृत्त प्रवक्ताओं में से 10 प्रतिशत भी नेट/स्लेट या पी.एच.डी. नहीं हैं।
परन्तु सरकार का यह तर्क भी निराधार है कि प्रदेश में उच्च शैक्षिक अहर्ता वाले प्रवक्ताओं की भारी कमी है जबकि इसी वर्ष के आरंभ में उच्च शिक्षा आयोग उत्तर प्रदेश ने विभिन्न डिग्री कालेजों में विभिन्न विषयों के 1652 पदों के लिए विज्ञापन संख्या-46 प्रकाशित कराया था जिसमें लगभग 63 हजार अर्ह अभ्यार्थियों ने दो हजार रुपये के डिमांड ड्राफ्ट के साथ आवेदन किया था। उसकी प्रक्रिया आज भी अकारण ठप्प पड़ी है। इसी प्रकार इससे पूर्व प्रकाशित विज्ञापन संख्या-44 तथा 45 की भी उच्च शिक्षा आयोग ने आजतक सुध नहीं ली। आश्चर्य की बात यह भी है कि प्रदेश सरकार बी.एड. कालेजों में वर्ष 2003 से एक भी प्रवक्ता की नियुक्ति नहीं कर पायी है।
उल्लेखनीय है कि यह आदर्श उस युवा मुख्यमंत्री/उच्च शिक्षा मंत्री ने जारी किया जो युवाओं को आगे लाना चाहता है। यह तथ्य भी जगजाहिर है कि कोई सरकारी प्रवक्ता जो सेवानिवृत्ति के करीब है, कितने समय कालेज में पठन-पाठन का कार्य करता है। संभवतः इसका उत्तर शून्य होगा।
जब एक लाख रुपये मासिक वेतन पाने वाला जबतक एक भी घंटा पढ़ाने योग्य नहीं रहता तो यह कैसे आशा कर ली जाये कि वह 25 हजार के मानदेय में शिक्षण कार्य पूरे मनोयोग से करेगा?
मेरा अनुरोध है कि मुख्यमंत्री इस आदेश को तुरंत रद्द करें तथा विज्ञापन संख्या -44,45 तथा 46 की लंबित प्रक्रिया को तत्काल आरंभ करायें ताकि प्रदेश के उच्च शिक्षा प्राप्त युवा वर्ग को शिक्षा के क्षेत्र में अधिक से अधिक अवसर प्राप्त हो सके। उनमें बढ़ता असंतोष समाप्त हो और इस सरकार के प्रति युवाओं का विश्वास बहाल हो सके।
-डा. महताब अमरोहवी.