प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देशवासियों से सत्ता संभालने के बाद सुझाव मांगे थे। उन्हें ढेर सारे सुझाव मिले भी होंगे। यहां सुझाव और सलाह देने वालों की कमी नहीं है। हमारे बीच में ऐसे बहुत लोग हैं जिनके सुझाव और सलाह दूसरों के लिए होते हैं, वे उसपर खुद भी बहुधा अमल करते नहीं देखे जाते। इस लिए हम सभी को पहले आत्मसुधार कर लेना चाहिए और उसके बाद दूसरों को सुझाव या मश्विरा देने की जहमत उठानी चाहिए। वैसे भी पीएम ने जब देशवासियों से आग्रह किया है तो एक सलाह मैं भी देना चाहता हूं। यदि उसमें कुछ भी असंगत हो तो अपना सुझाव निसंकोच साभार वापस लेना चाहूंगा।
चुनावों से पूर्व नरेन्द्र मोदी ने सुशासन, नवयुवकों को रोजगार देने, भ्रष्टाचार और महंगायी समाप्त करने तथा किसानों और मजदूरों के हित में प्राथमिकता से काम करने का वचन दिया था। देश की सीमाओं पर हो रहे पाकिस्तानी हमले में मारे जा रहे जवानों का बदला लेने का बार-बार दावा किया जा रहा था बल्कि एक-एक के बदले दस-दस जवानों के सिर लाने के दावे किये जा रहे थे।
अब जनता ने जब सत्ता पूर्ण बहुमत से सौंप दी तो आप इन सब वादों और वचनों को भूलकर हर समय भाषण ही सुनाये जा रहे हैं।
प्रधानमंत्री जी ने देश की जनता से यह वादा नहीं किया था कि वे पीएम बनने के बाद केवल टीवी चैनलों पर मौजूद रहकर आयेदिन देश की जनता को संबोधित करते रहेंगे। टीवी चैनलों को भी सारे समाचार बंद करके केवल पीएम का भाषण ही दिखाना होगा। रामायण की एक उक्ति है -‘पर उपदेश कुशल बहुतेरे।’
यह मैं ऊपर लिख चुका, देश में वक्ताओं और उपदेशकों की भरमार है। उनके उपदेश सुन-सुनकर लोग परेशान हैं। अब आयेदिन पीएम के भाषण जनता को सुनने पड़ रहे हैं। जबकि जनता भाषण नहीं सुशासन चाहती है। स्वयं भाजपा भी चुनाव में यही नारा देती रही है कि सुशासन के लिए मोदी को लायें। इसीलिए मेरा मोदी जी को उनके मांगने पर यही सुझाव है कि प्रधानमंत्री जी भाषण के बजाय जनता को सुशासन चाहिए। देश ही जनता उपदेश और भाषण सुन-सुनकर थक चुकी। उसे प्रधानमंत्री से रचनात्मक बदलाव चाहिए जो कहने से नहीं करने से होगा।
आम चुनाव बीते चार माह हो गये अब आप सरकार के मुखिया हैं। चुनावी दौर भावावेश में था, अब लोगों की भावना स्थिर है। इसलिए वह लोग गंभीरता से सोच समझ रहे हैं। वे सरकार से अपेक्षित परिणाम चाहते हैं। इसलिए सरकार कहने के बजाय करके दिखाये। इन भाषणों पर भी देश की जनता विश्वास नहीं करेगी।
जब पिछले भाषणों के वायदे पूरे नहीं होंगे तो आयेदिन नये-नये हसीन सपनों पर भरोसा कैसे किया जा सकता है। लोग कह रहे हैं कि चुनाव से पहले सरदार पटेल की प्रतिमा को लौह संग्रहण करने वालों ने गद्दी मिलने के बाद बिल्कुल भुला दिया।
चुनाव में युवा शक्ति के नाम पर शहीद भगत सिंह का बार-बार स्मरण करने वाले नरेन्द्र मोदी ने उनके जन्मदिवस पर उनका नाम तक नहीं लिया। पीएम बनते ही उनकी सोच में कितना बदलाव आ गया। क्या यह भगत सिंह जैसे देशभक्त को भी मोदी और भाजपा नेताओं ने चुनावी हथियार की तरह इस्तेमाल नहीं किया। किसी भी भाजपा नेता ने भारत माता के इस अमर सपूत को जन्मदिवस पर स्मरण तक नहीं किया। वैसे भाषणों में भारत देश युवाओं का देश है क्योंकि हरियाणा और महाराष्ट्र में युवाओं के वोट हैं।
हरियाणा, महाराष्ट्र, उत्तप्रदेश तीन राज्यों में पहले ही चीनी मिलें लगी हैं। यहां गन्ना किसानों के खेतों में खड़ा है। पीएम को यहां के किसानों, मजदूरों और मिल मालिकों के हित में गन्ना मूल्य घोषित करवाकर बीस अक्टूबर तक मिल चलवाने का प्रबंध करना चाहिए था। इससे करोड़ों लोगों को लाभ होता लेकिन उन्हें भाषण सुनाने का रिकोर्ड कायम करना है। पीएम जी भाषण सुन-सुन कर जनता थक चुकी उसे आप अपने वादे पूरे करिये।
-जी.एस. चाहल.