जिन युवा क्रांतिकारियों ने देश को आजाद कराने के लिए जीवन का यह कहकर बलिदान दे दिया कि ‘अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो’ और आजादी के बाद जिन नेताओं के हवाले हमारा यह वतन सातवें दशक को पार करने वाला है, उन नेताओं ने कई पाठ्य पुस्तकों में आज भी उन शहीदों को आतंकवादी लिख रखा है। भारत सरकार द्वारा जारी इग्नू की कक्षाओं की पुस्तकों में आज भी सरदार भगत सिंह, राजगुरु और उनके साथी क्रांतिकारियों को आतंकवादी लिखा हुआ है।
हमारे यहां के दो बच्चों ने अमरोहा के हाशमी डिग्री कालेज से गत वर्ष इग्नू के माध्यम से बीए की परीक्षा दी थी। उनकी एक पुस्तक में मैंने स्वयं यह पढ़ा तो आश्चर्य हुआ। वह पुस्तक मेरे पास मौजूद है। यह हाल तो उनके जीवन परिचय का है। बीते दिनों शहीद भगत सिंह के जन्मदिन तक को सरकारी स्तर पर मनाने की जहमत नहीं उठाई गयी।
इसके विपरीत आजादी के बाद लम्बे समय तक सत्ता सुख भोगने वाले तथा आज तक जिनका परिवार राजनीति पर प्रभुत्व जमाये है ऐसे प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरु के जन्मदिवस पर केन्द्र सरकार बीस करोड़ रुपये खर्च करने जा रही है।
संस्कृति मंत्रालय ने इसके लिए बीस करोड़ का फंड आवंटित कर दिया बताते हैं। दूसरी ओर कांग्रेस पार्टी इससे भी बड़ा आयोजन इस मौके पर 17-18 नवम्बर को कर रही है जिसमें 19 देशें के 55 नेता शामिल होंगे।
गरीब देश के लोगों की गाढी कमाई के धन को सवा सौ साल पहले पैदा हुए एक ऐसे नेता के नाम पर लुटाया जाने का इंतजाम कर दिया गया है जिसकी किसी भी पीढ़ी में अभी तक अमीरी बादशाहत से कमोबेश नहीं। यह और भी दुखद है कि पांच माह पूर्व स्वयं को चाय बेचने वाला बताकर प्रधानमंत्री की कुरसी तक पहुंचा व्यक्ति भी कुरसी मिलते ही अमीरों की चकाचौंध में खो गया और चाय वालों की चाय तथा उनके जैसे करोड़ों मजदूरों के पसीने की मेहनत का पैसा पानी की तरह रईसों के नाम बहाया जाने लगा। देश की बेशकीमती युवा पीढ़ी देश को आजाद कराने के नाम पर हमारे देश के बुजुर्ग नेताओं ने आगे कर शहीद कर समाप्त करा दी थी। उत्साहित युवा देशप्रेमी हंसते-हंसते देश पर मिटते चले गये।
परिपक्व तथा बड़ी आयु के नेता कुरसी की ओर टकटकी लगाये रक्षात्मक ढंग से लुका-छिपी का खेल खेलकर सुरक्षित बचते रहे। वे अंग्रेजों के लिए भी खतरा नहीं थे और जनता में भी बेहतर छवि बनाये रखते थे।
आजादी के बाद भी कमोबेश हमारे वह नेता जिनके हवाले शहीदों ने वतन किया था उसी ढर्रे पर चलते रहे। उसी का नतीजा है जनता आजतक नेताओं की नब्ज नहीं पकड़ पायी। वह बार-बार छली जाती रही है। किसानों, मजदूरों और ग्रामीणों का एजेंडा हमारी केन्द्र और राज्य दोनों सरकारों ने एक ओर रख दिया है। पिछली सरकारें अपने-अपने दलों के नेताओं के नाम पर ही धन लुटाने को लेकर बदनाम हुईं लेकिन केन्द्र में इस बार बनी सरकार विपक्षी नेताओं के नाम पर भी जमकर धन खर्च कर रही है और तुर्रा है कि सरकार खर्चों में मितव्ययिता बरत रही है।
-जी.एस. चाहल.
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हमारे यहां के दो बच्चों ने अमरोहा के हाशमी डिग्री कालेज से गत वर्ष इग्नू के माध्यम से बीए की परीक्षा दी थी। उनकी एक पुस्तक में मैंने स्वयं यह पढ़ा तो आश्चर्य हुआ। वह पुस्तक मेरे पास मौजूद है। यह हाल तो उनके जीवन परिचय का है। बीते दिनों शहीद भगत सिंह के जन्मदिन तक को सरकारी स्तर पर मनाने की जहमत नहीं उठाई गयी।
इसके विपरीत आजादी के बाद लम्बे समय तक सत्ता सुख भोगने वाले तथा आज तक जिनका परिवार राजनीति पर प्रभुत्व जमाये है ऐसे प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरु के जन्मदिवस पर केन्द्र सरकार बीस करोड़ रुपये खर्च करने जा रही है।
संस्कृति मंत्रालय ने इसके लिए बीस करोड़ का फंड आवंटित कर दिया बताते हैं। दूसरी ओर कांग्रेस पार्टी इससे भी बड़ा आयोजन इस मौके पर 17-18 नवम्बर को कर रही है जिसमें 19 देशें के 55 नेता शामिल होंगे।
गरीब देश के लोगों की गाढी कमाई के धन को सवा सौ साल पहले पैदा हुए एक ऐसे नेता के नाम पर लुटाया जाने का इंतजाम कर दिया गया है जिसकी किसी भी पीढ़ी में अभी तक अमीरी बादशाहत से कमोबेश नहीं। यह और भी दुखद है कि पांच माह पूर्व स्वयं को चाय बेचने वाला बताकर प्रधानमंत्री की कुरसी तक पहुंचा व्यक्ति भी कुरसी मिलते ही अमीरों की चकाचौंध में खो गया और चाय वालों की चाय तथा उनके जैसे करोड़ों मजदूरों के पसीने की मेहनत का पैसा पानी की तरह रईसों के नाम बहाया जाने लगा। देश की बेशकीमती युवा पीढ़ी देश को आजाद कराने के नाम पर हमारे देश के बुजुर्ग नेताओं ने आगे कर शहीद कर समाप्त करा दी थी। उत्साहित युवा देशप्रेमी हंसते-हंसते देश पर मिटते चले गये।
परिपक्व तथा बड़ी आयु के नेता कुरसी की ओर टकटकी लगाये रक्षात्मक ढंग से लुका-छिपी का खेल खेलकर सुरक्षित बचते रहे। वे अंग्रेजों के लिए भी खतरा नहीं थे और जनता में भी बेहतर छवि बनाये रखते थे।
आजादी के बाद भी कमोबेश हमारे वह नेता जिनके हवाले शहीदों ने वतन किया था उसी ढर्रे पर चलते रहे। उसी का नतीजा है जनता आजतक नेताओं की नब्ज नहीं पकड़ पायी। वह बार-बार छली जाती रही है। किसानों, मजदूरों और ग्रामीणों का एजेंडा हमारी केन्द्र और राज्य दोनों सरकारों ने एक ओर रख दिया है। पिछली सरकारें अपने-अपने दलों के नेताओं के नाम पर ही धन लुटाने को लेकर बदनाम हुईं लेकिन केन्द्र में इस बार बनी सरकार विपक्षी नेताओं के नाम पर भी जमकर धन खर्च कर रही है और तुर्रा है कि सरकार खर्चों में मितव्ययिता बरत रही है।
-जी.एस. चाहल.
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