सत्ता मिलते ही किसानों को भूली भाजपा

लोकसभा चुनाव से पूर्व खेती और किसान का जो मुद्दा भाजपा ने प्रमुखता पर रखा था वह अब सबसे नीचे आ गया है। जैसे-जैसे केन्द्र सरकार का समय गुजरता जा रहा है वह किसानों और गांवों की बात हाशिये पर धकेलती जा रही है। चुनाव में किसानों से वोट मांगते समय नरेन्द्र मोदी सत्ता मिलने पर उन्हें कृषि उपज पर पचास फीसदी लाभ दिलाने का दावा कर रहे थे जबकि किसानों का गन्ना कोल्हू-क्रेशरों पर भाड़े के भाव लुट रहा है तथा केन्द्र ने गन्ना मूल्य 220 रुपये तय कर दिया। क्या प्रधानमंत्री और उनके साथी बता सकते हैं कि गन्ने के उत्पादन पर कितनी लागत आती है। किसान अपनी मजदूरी भी न जोड़े तब भी 220 रुपये में एक कुंटल गन्ना पैदा नहीं हो सकता। उसकी भूमि की कीमत और दूसरे संसाधनों को जोड़ा जाये तो लागत तीन सौ से अधिक बैठती है लेकिन भूमि तथा किसान अपनी मजदूरी को कभी खर्च में शामिल नहीं करता फिर भी उसे लागत पर लाभ का हक मिलना कठिन है।

किसानों का गन्ना केन्द्र सरकार को वाजिब दाम पर समय से मिल चलवाकर डलवाने का दायित्व निभाना चाहिए। उसे किसानों से किये वायदे के मुताबिक उसका लाभ भी दिलवाना चाहिए।

सत्ता मिलते ही जिस तरह केन्द्र सरकार बड़े-बड़े उद्योगपतियों के हाथ का खिलौना बनती जा रही है उसका आभास किसानों को होना शुरु हो गया है। किसानों से 14सौ रुपये कुंटल खरीदी गेहूं का आटा 25 रुपये से 35 रुपये किलो तक बिक रहा है। बाहर से काला धन मंगाने का नाटक करने वाले बाबा रामदेव के मिल में पिसा गेहूं का आटा भी दुकानों पर 25 रुपये किलो से कम नहीं। किसानों का गेहूं पिसते ही महंगा हो जाता है। किसानों के खेत से आलू खत्म होते ही चालीस रुपये हो जाते हैं और आलू की फसल जबतक किसान मंडी में पहुंचायेगा तबतक केन्द्र सरकार विदेशों से आलू आयात करके उसकी मिट्टी पीटने की तैयारी में है ताकि आलू उत्पादक भी गन्ना उत्पादकों की तरह बरबाद हो जायें। पचास हजार टन आलू केन्द्र सरकार विदेशों से आयात करने की तैयारी कर चुकी है।

गेहूं का भाव भी गत वर्ष से मात्र बीस रुपये बढ़ाया गया है जबकि यह दूसरी चीजों के मुकाबले दो हजार होना चाहिए और प्रधानमंत्री के वायदे के मुताबिक लागत पर पचास फीसदी का लाभ दिया जाये तो कीमत और अधिक होगी।

केन्द्र सरकार को किसानों को गुमराह करने से बाज आना चाहिए। यह देश किसानों का है। याद रखें किसानों का अहित करने से न तो देश का आर्थिक विकास होगा और किसान यदि सत्ता दे सकते हैं तो वे उसे छीनना भी जानते हैं।

उत्तर प्रदेश के किसानों का भरोसा कायम रखने के लिए केन्द्र सरकार को अविलम्ब उचित गन्ना मूल्य तय कराकर मिलों को चलवाना चाहिए। राज्य की सपा सरकार के भरोसे किसानों को छोड़ना किसी के भी हित में नहीं।

-जी.एस. चाहल.