गढ़ गंगा मेला : भक्ति और मस्ती का बेजोड़ संगम

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महाभारत काल से गढ़ क्षेत्र में प्रत्येक वर्ष कार्तिक मास में 15 दिनों तक लगने वाला गंगा मेला अपने आप में श्रद्धालुओं की भक्ती और मस्ती का बेजोड़ संगम है जंहा बुजुर्ग श्रद्धालुओं की टोलियां मेले में  जगह-जगह लगे कैंपों पर हुक्के की गुडगुड़ाहट के साथ मां गंगा का गुणगान करते देखे जा सकते हैं। वहीं दूसरी और युवा गंगा के रेतीली मैदान में कबड्डी, बालीबाल और ताश आदि खेलते  हुए मस्ती करते दिखाई पड़ेंगे। बच्चे भी रेत में विभिन्न प्रकार की रंगोली व तरह-तरह की आकृतियां  बनाते दिखाई देंगे। वहीं महिलाएं बोल-कबूल के तहत बैंड-बाजों के साथ नाचते गीत  गाते मां गंगा का गुणगान करते अपने-अपने डेरों से गंगा किनारे पूजा-अर्चना के लिए जाती दिखाई देते हैं।

महाभारतकाल में पांडवों ने यहां पड़ाव डालकर कुरुक्षेत्र युद्ध में अपने मृतक भाई-बंधुओं व परिजनों की आत्मा शांति के लिए कार्तिक मास की चतुदर्शी को दीपदान किए  थे। तभी से यहां दीपदान किए जाने का भी विशेष महत्व चला आ रहा है। शास्त्रों के  अनुसार राजा नहूष को पिशाच योनि से मुक्ति भी यहीं मिली थी। और विष्णु भगवान के गण जय और विजय को भी यंहा मुक्ति प्रदान हुई थी। गंगा स्नान कर यहां स्थित नक्काकुंआ मंदिर, झारखंडेश्वर मंदिर, ऐतिहासिक गंगा मंदिर व वहां स्थित  सीढियां, सफेद ब्रह्माजी का मंदिर दर्शन मात्र से मनुष्य अपने पापों से छूट कर जीवन के सही मार्ग की प्राप्ति कर लेता है। तभी से यहां श्रद्धालु भक्ति और आस्था लेकर मनवांछित फल प्राप्ति की कामना लिए लाखों की संख्या में भक्त यहां आते हैं। यहां समय परिवर्तन के साथ भक्ति के साथ-साथ मस्ती का बेजोड़ संगम भी मेले में प्रतीत होता दिखाई पड़ता है।

-मुकेश गुरु/गढ़मुक्तेश्वर.