नमामि गंगा योजना के शोर शराबे में गंगा नदी कब पवित्र होगी यह भले ही दावा न किया जाये लेकिन इस बार लोगों को तरबूज, खरबूजे और बेल वाली सब्जियां बहुत महंगी खरीदनी होंगी। इसी के साथ गंगा तटवर्ती कई सौ गांवों के हजारों कृषक परिवारों के रोजगार पर बुरा प्रभाव पड़ना लाजिमी है।
वैसे तो हरिद्वार से लेकर बंगाल की खाड़ी तक गंगा नदी जहां समुद्र में गिरती है, अधिकांश स्थानों पर गंगा के दोनों ओर तटवर्ती इलाकों में तरबूज, खरबूजा, खीरा, ककड़ी, लौकी, कद्दू आदि की खेती की जाती है। परंतु हम यहां खासकर बिजनौर, मुजफ्फरनगर, अमरोहा, हापुड़, संभल और बुलंदशहर जनपदों के गंगा नदी के किनारे बसे उन गांवों के किसानों की बात कर रहे हैं जहां की हमने जानकारी हासिल की है। यहां गंगा के दोनों ओर नवंबर माह में ही प्रतिवर्ष उपरोक्त फसलों के बीज बो दिये जाते थे। बल्कि आजकल छोटे-छोटे पौधे भी उग आते थे। जिन्हें ठंड से बचाव के लिए कांस आदि में छुपा दिया जाता था। मौसम बदलते ही फरवरी समाप्त होते ही उन्हें खुला छोड़ दिया जाता था तब वे तेजी से बढ़ते हैं।
गंगा तटवर्ती क्षेत्र के लोग इस बार शांत हैं। अधिकांश लोगों ने अभी तक नालियां भी नहीं बनायीं। न ही कोई तैयारी दिखाई देती है। जबकि आजकल गंगा के दोनों ओर दूर-दूर तक बड़े पैमाने पर फसल लग चुकी होती थी। कारण पूछने पर गढ़मुक्तेश्वर के भाकियू नेता मूलचंद यादव कहते हैं कि गंगा सफाई योजना में गंगा के दोनों ओर सरकार वृक्षारोपण करायेगी। अतः किसान ऊहापोह में हैं कि पता नहीं कि कहां तक का क्षेत्र अधिगृहीत हो जाये। कहीं उनकी फसल न चली जाये? इसी भ्रम में किसान फंसे हैं। उन्होंने अभी कुछ नहीं बोया। दूर तक खेत खाली पड़े हैं।
बलवरपुर के किसान नेता कृपाराम राणा का भी यही कहना है कि नमामि गंगा के समाचार से किसान तरबूज, खरबूजा, और सब्जियां बोने से कतरा रहे हैं। उन्होंने भी अपने खेत में अभी कुछ नहीं बोया। उनके जैसे न जाने कितने किसान हैं।
ग्राम तिगरी, लठीरा और मोहम्मदाबाद के कई सौ किसान भी अभी इस बारे में कोई निर्णय नहीं ले सके जिससे वे परेशान हैं।
किसान और उपभोक्ता दोनों को घाटा होगा
मार्च माह में गरमी शुरु होते ही खीरा, ककड़ी, तरबूज और खरबूते आने शुरु होते जाते हैं। इस बार या तो ये देर से आयेंगे अथवा बाहर से आने के कारण महंगे होंगे। वैसे भी कम उत्पादन होने से मूल्य बढ़ना स्वाभाविक है। ऐसे में लौकी आदि सब्जियां भी महंगी मिलेंगी। क्योंकि इनका अधिकांश उत्पादन भी गंगा तटवर्ती क्षेत्र में ही होता है। जहां से सब्जी दिल्ली आदि बड़े नगरों को भेजी जाती है। मांग और आपूर्ति का संतुलन गड़बड़ाने से मूल्य संतुलन पर उसका प्रभाव भी पड़ेगा जिससे सब्जियां गरमियों में महंगी हो जायेंगी। इससे किसान और उपभोक्ता दोनों ही घाटे में रहेंगे- किसान कम उत्पादन होने और उपभोक्ता महंगी खरीद के कारण।
-टाइम्स न्यूज़ गढ़मुक्तेश्वर.