विकास में रोड़े विनाश को झंडी

जहां जनहित के काम होते हैं वहां कई अधिकारी काम में व्यवधान डालकर कानूनी दांवपेचों का बहाना बनाते हैं। ऐसे में कई लोक कल्याणकारी कार्य अनावश्यक रुप से ठप्प कर दिये जाते हैं। इसके विपरीत कानूनों और नियमों को ताक में रखकर कई काम अवैध होते हुए करा दिये जाते हैं।

बीते वर्ष वन विभाग के अधिकारियों का रवैया यहां ऐसा ही रहा। गजरौला में निर्माणाधीन एक ओवरब्रिज की राह में बाधा बने पिलखन के दो पेड़ों को कटवाने में मंजूरी के लिए एक साल से भी अधिक समय लगा। न तो पेड़ फलदायक थे और न ही उनकी लकड़ी विशेष मूल्यवान थी। इन दो पेड़ों को काटने में पुल निर्माण कंपनी के कर्मचारियों को लखनऊ से दिल्ली तक भागदौड़ करने के बाद एक साल से भी अधिक समय अनापत्ति प्रमाण पत्र लेने में लगा। इससे तेजी से जारी निर्माण कार्य रोकना पड़ा। लंबे समय के बाद फिर से निर्माण शुरु हुआ है। इससे आवागमन बाधित है और लाइन पार आनेजाने वालों को बहुत दिक्कतें हैं। भ्रष्ट और लापरवाह विभागीय अधिकारियों की मनमानी से प्रतिदिन यहां एक बड़ी आबादी जिस कष्टप्रद स्थिति से जूझ रही है उसे भुक्तभोगी ही जानते हैं।

वन विभाग के अधिकारियों ने इसके  विपरीत नियमों और कानूनों को धता बताते हुए बछरायूं में बौर से लदा आम का पूरा बाग धराशायी करा दिया। मालिकों ने दो दिन में ही सारा काम करके हरे—भरे बाग का सफाया करा दिया। यह बाग बछरायूं—धनौरा सड़क मार्ग से सटा था। जहां से मंडी धनौरा के वन विभाग कर्मचारी पूरे दिन गुजरते हैं और बराबर में ही पुलिस चौकी तथा थाना है। इस बाग को कटने में कोई अड़चन नहीं आयी और बीच राह में खड़े पिलखन के पेड़ों को कटवाने में पुल निर्माताओं के पसीने छुड़ा दिये गये। आम के पेड़ यहां धड़ाधड़ काटे जा रहे हैं। एक साल में ही वन विभाग के सहयोग से कई सौ आम के पेड़ों का नामोनिशान मिटा दिया गया।

गजरौला का उपरोक्त ओवरब्रिज बिजली विभाग द्वारा रोड़े अटकाने की वजह से भी नहीं बन पाया। करोड़ों का भुगतान कर देने के बावजूद बिजली वालों ने असहयोग जारी रखा। उन्होंने ने भी काम रुकवाने में पूरी ताकत लगायी। यह कितनी हास्यास्पद बात है कि जनहित के कामों में अड़ंगा लगाने वालों के खिलाफ कुछ भी नहीं होता। आम जनता भी ऐसे में मूकदर्शक बनी रहती है। ऐसे लोगों को सबक सिखाने की जरुरत है।

-टाइम्स न्यूज़ गजरौला.