कुत्ते क्यों हो गये आदमी के खून के प्यासे?

dog attacks in hasanpur and ujhari
पिछले दिनों हसनपुर और उझारी के आसपास के इलाकों में आवारा कुत्तों द्वारा कई लोगों पर जानलेवा हमले किये गये जिसमें कुछ बच्चों की जान चली गयी जबकि कई घायल इलाज करा रहे हैं। गली मोहल्लों में तो जिले भर में कुत्तों द्वारा काटने वाले लोगों की सूची बहुत लंबी है। उझारी के पास तीन किशोरियों ने खतरनाक कुत्तों से पेड़ पर चढ़कर जान बचाई। कुत्तों के हमलावर होने का सिलसिला जारी है।

हमारे यहां कई बार बीमारी कोई होती है और इलाज कुछ और किया जाता है। यह सब कभी—कभी जानबूझकर तो कभी अनजाने में भी होता है। गत वर्ष रामपुर में कई बच्चों को आवारा कुत्ते कच्चे चबा गये थे। खेतों में आते—जाते या खेत में अकेला पाकर बच्चों को कुत्ते निशाना बना रहे थे। कई बेकसूर नौनिहाल बड़ों की बेवकूफी से कू्ररतापूर्वक कुत्तों का निवाला बन गये। यह क्रम एक—दो बार नहीं बल्कि महीनों चला। लोग खेतों में जाने से भी डरने लगे। कहीं—कहीं बच्चों की तरह बड़ों पर भी कुत्तों ने हमला बोला। आजम खां जैसे सख्त मिजाज नेता के इलाके में कुत्तों का इतना साहस —अखबारों में कुत्तों के हमलों की सुर्खियों पर खां के निर्देश पर प्रशासन हरकत में आया। कुछ लोगों की चौकसी और कुत्तों के कत्लेआम के बाद दुखद घटनायें रुकीं जो अभी तक बंद है।

ठीक रामपुर की ही तर्ज पर कुत्ते उझारी के चारों ओर सक्रिय हैं। एक ओर लोग पशु चोरी से परेशान हैं तो दूसरी ओर कुत्तों के आतंक ने  लोगों का जीवन दूभर कर दिया है। दोनों बीमारियों में से किसी भी बीमारी की दवा ईजाद नहीं की गयी और न इस समस्या के मूल कारण को समझकर उसके निदान का प्रयास किया जा रहा है।

वैसे तो जिलेभर के पूरे सूबे के हर शहर हर गांव के हर गली व मोहल्ले में आवारा कुत्ते मिलेंगे जिन्हें स्ट्रीट डॉग भी कहा जाता है। छोटे कस्बों तथा ग्रामीण क्षेत्रों के ये आवारा कुत्ते भोरकाल में जंगलों की ओर निकल जाते हैं। कभी—कभी कोई खरगोश आदि छोटा जंगली जानवर इनकी भेंट चढ़ जाता है।

काफी समय से क्षेत्र में खासकर हसनपुर से संभल के बीच के पिछड़े इलाके में पशु चोरी और जंगल में अवैध रुप से पशु वध की घटनायें तेजी से बढ़ी हैं। पुलिस पर सत्ताधारी नेताओं के दबाव के चलते इस तरह के तत्व आज भी सक्रिय हैं। इस तरह की घटनायें आयेदिन अखबारों की सुर्खियां बनती हैं। बार—बार लोग आक्रोश भी व्यक्त कर रहे हैं। परंतु पशु चोरों के हौंसले इतने बुलंद हैं कि वे पशु खुलेआम लूटते हैं —विरोध पर पशु पालकों को गोलियों से उड़ा दिया जाता है।

लूटे और बलपूर्वक छीने पशुओं का जगल में ही वध कर दिया जाता है। उनके शरीर के अनावश्यक अवशेष वहीं छोड़ दिये जाते हैं। इस तरह के अवशेष जंगलों में जगह—जगह देखे जा सकते हैं। किसानों और पशु पालकों का कहना है कि कुत्तों के झुंड इन्हीं अवशेषों को खाने के लिए जंगल में घूमते रहते हैं। वे पूरी तरह मांसाहारी हो चुके। जबकि पहले गांवों में लोग उन्हें रोटी, बची सब्जी तथा मट्ठा आदि डाल देते थे। मांस न मिलने पर वे इक्का—दुक्का बच्चों अथवा बड़ों पर भी हमला बोलने से नहीं चूक रहे। वे झुंडों में रहते हैं ऐसे में एक—दो निहत्था बड़ा व्यक्ति भी उनके सामने बेसहारा है।

लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान इस समस्या से भाजपा उम्मीदवार को किसानों ने अवगत कराया था। तब कंवर सिंह तंवर ने कहा था कि वे पशु चोरी और वध बंद करा देंगे, भाजपा को जिताओ। परंतु उसके बाद तो हालत और भी खराब हो गयी। किसानों को संदेह होने लगा है कि भाजपा और सपा में कोई समझौता हो गया?

वास्तव में इस समस्या के मूल में पशु लूट, अवैध मांस व्यापार और लचर कानून व्यवस्था है। जबतक यह दूर नहीं होगा कुत्ते खूंखार बनते जायेंगे। अभी वे बच्चों को खा रहे हैं, वे बड़ों को भी निवाला बनाने से नहीं चूकेंगे। इस समस्या से बेखबर नेताओं से इसका बदला तो जनता चुनाव में ही ले सकती है।

-टाइम्स न्यूज़ अमरोहा.