सरकार से मोह भंग हो चुका अन्नदाता का


kisan andolan against land bill in india
कृषि प्रधान देश के उस बहुसंख्यक वर्ग का उस सरकार से पूरी तरह मोह भंग हो चुका है जिसे दस माह पूर्व उसने सुखद आशाओं के साथ केन्द्र की सत्ता भारी बहुमत से सौंपी थी। इससे पूर्व आजाद भारत में किसी भी सरकार से जनता का इतनी जल्दी विश्वास नहीं उठा था। यह स्पष्ट नजर आने लगा है कि केन्द्र की भाजपा सरकार किसानों और गरीबों के हितों को दरकिनार कर केवल गिने—चुने पूंजीपतियों के हाथ का खिलौना बन कर रह गयी है। साथ ही ऐसा जाल तैयार किया जा रहा है जिसमें फंस कर आम आदमी और किसान मुक्त होने को हाथ—पैर भी न मार सके।

इलैक्ट्रोनिक मीडिया के अधिकांश चैनल वही बोल रहे हैं जो सरकार चाहती है। किसानों के धरने—प्रदर्शन और उनके हितों की आवाज दबाने के पुख्ता इंतजाम हो रहे हैं। पंजाब से लेकर बिहार तक पैदा होने वाले अनाज की सरकारी खरीद पर पाबंदी, नया भूमि अध्यादेश, उसके बाद किसानों की आत्म हत्याओं के दौर के बावजूद किसानों की खुशहाली का गुणगान, सरकार द्वारा गांव और गरीबों के उत्थान के कसीदे कढ़े जा रहे हैं।

चुनाव से पूर्व बार—बार नरेन्द्र मोदी एलान कर रहे थे, कांग्रेस राज में किसान लुट रहा है। मैं किसानों को लागत से पचास फीसदी मुनाफा दिलाऊंगा। भोला किसान बहकाया गया। उसे अब ठगी का अहसास हो गया है। हजारों की तादाद में भूखे—प्यासे किसान प्रधानमंत्री को ढूंढ रहे हैं। वह नहीं मिल रहे। वह रेडियो पर अपने ’मन की बात’ कह देते हैं लेकिन जिनके वोटों से प्रधानमंत्री बने हैं उनके मन की बात एक बार भी सुनने को तैयार नहीं।

खेत से खलिहान तक, गांव से दुकान तक और देश के कोने—कोने से किसान जंतर—मंतर क्या, जहां भी उपयुक्त स्थान समझ रहे हैं धरना—प्रदर्शन की तैयारी जुटा रहे हैं। केन्द्र सरकार, लगता है किसी गलतफहमी में है, इस बार किसान साम्प्रदायिक अथवा जातीय रंग में नहीं फंसने वाला, वह एकजुट हो रहा है। वह साम्प्रदायिक राजनीति के खिलाफ एकजुट हो रहा है। यह समय बतायेगा कि यह ध्रुवीकरण किसके पक्ष में होगा?

-जी.एस. चाहल.
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