
वैसे तो यहां सभी विकास कार्यों और निर्माण में बेहद घटिया सामग्री और अधोमानकों का प्रयोग हुआ है। लेकिन चौहानपुरी मोहल्ले में इ.ओ. और ठेकेदार की मिलीभगत से मजबूत सड़क को लोगों के विरोध के बावजूद तोड़कर जबरदस्ती उसके ऊपर इंटरलॉकिंग ईंटों की सड़क बना दी थी। शिकायत पर इसकी जांच हुई। तत्कालीन एसडीएम धनौरा ने जांच की, लोगों की शिकायत के बावजूद ठेकेदार या इ.ओ. को जांचकर्ता ने कुछ नहीं कहा। लोगों का आरोप था कि इ.ओ. की जांच अधिकारी से बात हो गयी थी। क्या बात हुई थी? यहां सबको पता है। असंतुष्ट लोगों ने तत्कालीन डीएम भवनाथ सिंह से जांच की गुहार की। वे गंभीरता को समझते हुए कार्यस्थल पर स्वयं पहुंचे। सड़क का स्वयं निरीक्षण किया। लोगों से जानकारी ली। हकीकत पता चलते ही उन्होंने नाराजगी के साथ इस काम का भुगतान रोक देने तथा ठेकेदार सभासद संजय अग्रवाल की सदस्यता तक समाप्त करने का निर्देश दिया था। इस प्रकरण पर शासन स्तर से नगर पंचायत इ.ओ. से जबाव तलब भी किया गया था।
इतना सबकुछ होने के बावजूद इ.ओ. तथा नगर पंचायत अध्यक्ष ने न केवल सभासद को भुगतान किया बल्कि उसे यहां कई अन्य कार्यों के ठेके भी प्रदान किये गये। बताया जाता है कि इस विवादित प्रकरण में व्याप्त सारी कार्यप्रणाली का मास्टर माइंड इ.ओ. ही है।
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18 मार्च को शासन स्तर से इस प्रकरण से संबंधित पत्रावली मांगी गयी है। इससे नगर पंचायत कार्यालय में हड़कंप है। हरपाल सिंह ने अपना बचाव करने के लिए इ.ओ. को संजय अग्रवाल के जबाव आदि के कागज डीएम कार्यालय को भेजने के निर्देश दिये हैं।
यहां इस तरह का यह एक अकेला प्रकरण नहीं है बल्कि कामिल पाशा के एक दशक से लंबे कार्यकाल में सैकड़ों विवादित तथा अनियमित मामले हैं। जिनकी सक्षम तथा उच्च स्तरीय अधिकारियों से जांच की आवश्यकता है। यदि ऐसा किया गया तो गजरौला में भी एक यादव सिंह बेनकाब हो सकता है। इसके लिए शिकायतकर्ताओं को नगर विकास मंत्री से बेहतर कोई नहीं हो सकता।
भानपुर में कई निर्माण कार्यों में लोगों ने शिकायतें की हैं। सड़कें, नाले, नालियों और इसी तरह के कार्यों की स्थिति नगर में सबको दिखाई दे रही है। जरुरत है ईमानदार जांच की।
पैसे से सबकुछ संभव -इ.ओ.
अमरोहा जनपद में चार पालिका परिषद और चार ही नगर पंचायत हैं। गजरौला को छोड़कर सभी निकायों में पांच वर्षों से भी कम समय में इ.ओ. बदल जाते हैं। कई बार एक साल भी बहुत से इ.ओ. पूरा नहीं कर पाये। गजरौला में भी 2003 तक कई इ.ओ. जल्दी—जल्दी बदले। जब 2003 में इ.ओ. कामिल पाशा यहां आये तो फिर कुरसी से चिपक ही गये। एक—दो बार उनकी यहां से स्थानांतरण की बात चली तो पाशा फेंकने में माहिर इ.ओ. उसे रद्द कराने में सफल रहे। उनका कहना है कि पैसे के बल पर सबकुछ संभव है। जब पैसा कमाओगे तो तभी ऊपर दे पाओगे और तेरह साल क्या, कोई रिटायमेंट तक भी नहीं हिला सकता। वास्तव में इ.ओ. की बात में दम है। नोएडा में भ्रष्ट यादव सिंह को न तो मायावती सरकार और न ही उसके बाद आयी सपा सरकार में कोई खतरा था। यह तो कम्बख्त केन्द्रीय स्तर से मामला गड़बड़ा गया। देखते हैं गजरौला के इ.ओ. का मौसम बदलता है या अभी उनके पाशों में दम है।
-टाइम्स न्यूज़ गजरौला.