किसानों की लाशों पर राजनीति क्यों?


एक ओर देश का अन्नदाता संकट के सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है। प्रतिदिन न जाने कितने किसान मौत के सामने हथियार डाल रहे हैं। अकेले उत्तर प्रदेश में ही इस बार मरने वाले अन्नदाताओं का आंकड़ा सैकड़े को पार कर गया है। वहीं दूसरी ओर केन्द्र और राज्य सरकारें एक-दूसरे पर दोषारोपण कर किसानों की लाशों की चिताओं पर राजनीतिक रोटियां सेक रही हैं। साठ-साठ रुपये के मुआवजे के चेक देकर किसानों के घावों पर मिर्च छिड़कने का काम हो रहा है।

प्रधानमंत्री देश के उद्योगपतियों के साथ ही विदेशों में भी ढोल पीट रहे हैं कि विदेशी उद्योगपतियों को भारत के किसानों की जमीन दिलाने के सरकार ने पूरे इंतजाम कर लिए हैं। इसलिए वे भारत में अपने कारोबार का साम्राज्य बेरोकटोक खड़ा कर लें। विदेशी कंपनियों को इससे बेहतर मौका नहीं मिलेगा।

दिल्ली के जिस मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने अपने राज्य के किसानों को पचास हजार रुपये प्रति हेक्टेअर का मुआवजा देना शुरु कर दिया है। उसकी कई राजनैतिक दल, खासकर भाजपा सबसे अधिक आलोचना कर रही है। यह वही भाजपा है जिसके नेता चुनाव प्रचार में बार-बार किसानों के उत्थान का ढोल पीटते रहे हैं। आज भी ये कहते यही हैं कि भाजपा ही किसानों की सबसे बड़ी हमदर्द है। इन बातों पर किसान विश्वास कर उसके साथ हो लिया था, लेकिन आज दस माह के परिणामों से ही मौत को गले लगाने को मजबूर हैं।

हालात ऐसे हैं कि भाजपा नेता कुछ भी कहें, अब किसान उनपर भरोसा करने को तैयार नहीं होगा। केवल भाजपा ही नहीं बल्कि समाजवादी पार्टी की सरकार को भी वह इसी श्रेणी में रख चुका है। राज्य में विधायकों और पूर्व विधायकों के वेतन और भत्ते बढ़ाने में उसे देर नहीं लगी। जबकि एक-एक विधायक पहले ही भारी भरकम खर्च हो रहा है। सरकारी कर्मियों को छह प्रतिशत महंगायी भत्ते में बढ़ोत्तरी आननफानन में कर दी गयी।

केन्द्र ने पहल कर राज्यों को भी साथ कर लिया। एक ओर दावे हो रहे हैं कि महंगायी नीचे जा रही है, दूसरी ओर छह प्रतिशत महंगायी भत्ता बढ़ाया जा रहा है। महंगायी बढ़ने पर भत्ता बढ़ता है, तो घटने पर घट जाना चाहिए। इन फैसलों से देश के खजाने पर बोझ नहीं पड़ता क्योंकि यह सौगात उन लोगों को दी जा रही है जिनका पेट भरने पर भी कभी नहीं भरता।

सरकारी खजाने उन मर रहे अन्नदाताओं के लिए नहीं हैं जो अभावों के कारण आज दम तोड़ने को मजबूर हैं। यदि केन्द्र और राज्य सरकारें किसानों के प्रति संवेदनशील होतीं तो किसानों के कर्ज माफी की घोषणा की जानी चाहिए थी। छोटे किसानों को सबसे पहले रियायत की जरुरत थी। किसानों की कर्ज वसूली स्थगित करने से उनपर कर्ज का और बोझ बढ़ेगा। कर्ज पर ब्याज जारी रहेगा, जब उसके खेत में फसल ही नहीं हुई तो वह धनाभाव में न तो अगली फसल ठीक तरह कर सकेगा, यदि फसल हो भी गयी उसे लागत पर लाभ नहीं मिला तो कैसे पिछला कर्ज अदा होगा और कैसी उसकी रोजमर्रा की जरुरतें पूरी होंगी?

सरकार कुछ भी घोषणा करे बैंक वसूली पर जोर देते रहेंगे। इसी सप्ताह उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड में स्टेट बैंक ने कर्ज अदा न करने पर 18 किसानों के ट्रैक्टर नीलाम किये हैं। यह कैसा कर्ज स्थगन है? किसानों के साथ इस समय इतना छल किया जा रहा है, जितना पहले कभी नहीं हुआ।

सन् 2008 की प्राकृतिक आपदा में मनमोहन सिंह सरकार ने साठ हजार करोड़ रुपयों के किसानों के ऋण माफ कर किसानों को बड़ी राहत दी थी। वह तो भ्रष्ट सरकार थी, आज केन्द्र में ईमानदार सरकार किसानों के लिए कर्ज माफी जैसा कदम उठाने का नाम भी नहीं ले रही। केजरीवाल की भी इसलिए बुराई हो रही है कि उन्होंने किसानों को बड़ी राहत दी है, हालांकि दिल्ली में अधिक नुकसान नहीं हुआ।

-जी.एस. चाहल.