कर्ज माफी ही किसानों की बरबादी रोक सकती है

भाजपा सरकार के आने से पूर्व किसानों की आत्महत्याओं का सिलसिला आंध्र प्रदेश के तेलंगाना और महाराष्ट्र के विदर्भ तक सीमित था। वैसे 2008 में सूखे तथा अन्य कारणों से परेशान किसानों को राहत देने के लिए तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार ने साठ हजार करोड़ रुपयों के किसानों के कर्ज माफ कर बहुत बड़ा कदम उठाया था। इससे तेलंगाना और विदर्भ में किसानों की आत्महत्याओं का सिलसिला थम गया था।

किसान क्रेडिट कार्ड प्रणाली से भी किसानों को लाभ हुआ था। फिर भी कृषि क्षेत्र में कई सुधारों की जरुरत थी। 2013 में केन्द्र की तत्कालीन सरकार ने नया भूमि अधिग्रहण लाकर किसानों के हित में एक और अच्छा कदम उठाया था। परंतु किसानों के हित की बातें बनाकर केन्द्र में भाजपा सरकार आने में सफल हो गयी।

भले दिनों की उम्मीद लगाये बैठे किसानों को उस समय भाजपा सरकार पर संदेह होने लगा जब किसानों को धान पर सब्सिडी खत्म कर दी गयी। धान तीन से चार सौ रुपये कुंटल सस्त बिका। किसानों को समय पर सस्ता खाद तक उपलब्ध कराने में नयी सरकार विफल रही। किसानों को सरकारी केन्द्रों के बजाय काले बाजार से खाद लेने को मजबूर होना पड़ा। सरकार गेहूं आदि का सस्ता बीज तक उपलब्ध कराने में नाकाम रही।

गन्ना भुगतान समय पर न होने, कोर्ट के आदेश के बावजूद केन्द्र का किसानों के बजाय उघोगपतियों की तरफदारी करने के कारण किसान पूरी तरह समझ गया कि उसे नरेन्द्र मोदी की सरकार ने बुरी तरह बेवकूफ बना दिया है। मोदी सरकार रात—दिन कार्पोरेट घरानों के लिए काम में लग गयी और किसान उसके एजेंडे से पूरी तरह बाहर हो गया।

रबी की फसल पर ओलावृष्टि से परेशान किसान तथा गन्ना भुगतान न होने से दुखी किसानों को नया भूमि अधिग्रहण बिल और परेशानी का सबब बन गया। भाजपा सरकार ने मात्र दस माह में किसान की आर्थिक कमर तोड़ने का सब ओर से पुख्ता इंतजाम कर दिया।

मीडिया में जब किसानों ने मोदी सरकार के भूमि अधिग्रहण के खिलाफ आवाज मुखर की तो उसे भी दबाने का प्रयास किया गया। इसके साथ ही उत्तर भारत के उन राज्यों में भी किसानों की आत्महत्याओं का सिलसिला चल पड़ा जहां हरित क्रांति का क्षेत्र था तथा इस तरह की घटनायें कभी मुश्किल से होती थीं।

पंजाब, हरियाणा तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भी किसानों की आत्महत्याओं का दौर जोर पकड़ गया है। मोदी ने भूमि आरक्षण अध्यादेश को कानून बनवाने के ्रप्रयास में मन की बात कही तो किसानों का धैर्य बिल्कुल ही जबाव दे गया। किसान उन्हें ध्यान से सुन रहे थे कि उनके लिए पीएम कोई राहत पैकेज की बात करेंगे लेकिन प्रधानमंत्री ने भूमि अध्यादेश का गुणगान करने के अलावा कोई बात नहीं की। यह और भी बड़ा झटका किसानों को लगा तथा आत्महत्याओं की इसके बाद बाढ़ आ गयी, जो थमने का नाम नहीं ले रही।

मुआवज़े से काम नहीं चलने वाला। किसानों को बचाने का एक ही रास्ता है। सरकार मनमोहन सिंह सरकार की तरह उनके कर्ज तुरंत माफ करने का आदेश जारी करे। इस समय 2008 से भी बड़े राहत पैकेज की जरुरत है। सरकारी मुआवजे से किसानों का कोई भला नहीं होगा।

-जी.एस. चाहल.