देश के सभी नेता, समाजसेवी, बुद्धिजीवी, पत्रकार और धार्मिक महानुभाव देश की प्रगति के नये-नये उपाय बताने से नहीं थकते तथा जहां तक राजनेताओं की बात है तो वे अपनी सरकारों के जरिये अपने हिसाब की योजनायें यह कहकर संचालित करते हैं कि इससे गरीबों का भला होगा और देश तरक्की करेगा। आजकल अधिकांश बुद्धिजीवी, एनजीओ तथा अधिकांश साधु-संत केन्द्र सरकार की प्रशंसा के पुल बांध रहे हैं। हो सकता है कि केन्द्र सरकार के कुछ फैसले उन्हें बेहतर लग रहे हैं, भले ही उनका प्रतिफल आना शुरु हो गया है।
देश में शिक्षा, सफाई, रोजगार और भ्रष्टाचार मुक्ति के लिए कुछ भी नहीं हो रहा। गरीबी उन्मूलन एक सबसे बड़ी समस्या है। सरकारें इस दिशा में बार-बार अकूत धन खर्च करती हैं। नयी-नयी योजनायें बनाती हैं। परंतु बेरोजगारी घटने के बजाय बढ़ती जा रही है। हर जगह भ्रष्टाचार सारी सीमायें लांघ चुका है। न्याय नहीं मिल रहा। आतंक, गुंडागर्दी, दुघर्टनायें और यौन शोषण जैसे अपराध लगातार बढ़ रहे हैं। देश में साम्प्रदायिक फसाद मामूली सी बात पर विकराल रुप ले लेते हैं। नेता सरकारी सुरक्षा कवर में हैं लेकिन आम आदमी की सुरक्षा रामभरोसे है। समस्यायें इतनी हैं कि उनकी श्रंखला का द्रौपदी की साड़ी की तरह कोई अंत नहीं।
दुखद पहलू यह है कि इस सबका कारण समझे बिना भारत भाग्य विधाता अपनी मरजी से इलाज में जुटे हैं। दर्द पेट में है, इलाज टांगों का हो रहा है। हमारी सारी समस्याओं का मूल कारण बढ़ती आबादी है। सबसे पहले सब चीजों को यथावत छोड़ आबादी काबू करने का प्रयास करना होगा। जिन घरों में दो लोगों का सर छुपाने का स्थान नहीं, वहां भी बच्चों की भरमार है।
प्रति वर्ष देश में सवा करोड़ से अधिक आबादी बढ़ रही है। जबकि रोजगार के अवसर एक-डेढ़ लाख से अधिक नहीं बढ़ रहे। कोई जादूगर भी इतनी बड़ी आबादी को सुविधायें मुहैया नहीं करा सकता। शहरों, सड़कों, नदी, नालों आदि में लगातार बढ़ रही गंदगी इसी वजह से है। सफाई का अभियान इस गंदगी बढ़ाने वाली आबादी के आगे सफल नहीं होने वाला।
करोड़ों शिक्षित तथा प्रशिक्षित छात्र स्कूल-कालेजों से प्रतिवर्ष कोर्स पूरा कर काम की तलाश में भटकने को मजबूर हैं। कितना भी प्रयास कर लिया जाये, इनमें से अधिकांश को काम नहीं मिलने वाला।
कभी 2020, कभी 2022 तक देश की तकदीर बदलने का जो सरकार दावा कर रही है। उसे पता होना चाहिए कि पांच वर्षों में दस करोड़ नये बेरोजगार देश में पैदा हो जायेंगे। जबकि करोड़ों पहले ही ठोकरें खाते-खाते जवानी खो चुके।
इसपर भी कई साध्वी और भगवा वस्त्रधारी लोगों से अधिक से अधिक बच्चे पैदा करने को कह रहे हैं। ये सभी ऐसे लोग हैं जो एक भी बच्चा पैदा नहीं कर सके। इन्हें अपने पीछे चलने वालों की भीड़ चाहिए। नेताओं को बड़ा वोट बैंक चाहिए, टीवी चैनलों और फिल्म वालों को दर्शक चाहिए, , उद्योगपतियों को अधिक से अधिक ग्राहक चाहिएं। परंतु ये सब यह भी जानते होंगे कि देश की जनसंख्या अब सीमा लांघती जा रही है। लोगों की दिक्कतें बढ़ती भीड़ से लगातार बढ़ रही हैं और जब यह हद से आगे हो जायेंगे तो देश पर बढ़ता जनसंख्या का बोझ सारी व्यवस्था को ही तहस-नहस कर देगा।
क्या देश के नेता, बुद्धिजीवी, समाजसेवी और साधु-संत इसी प्रतीक्षा में हैं। खुशहाल भारत का सपना आबादी पर संख्त नियंत्रण के बिना संभव नहीं। पहले आबादी रोको, फिर तरक्की देखो।
-जी.एस. चाहल.