स्कूल कालेजों में छात्र नहीं पहुंच रहे

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उत्तर प्रदेश शिक्षा बोर्ड द्वारा केन्द्रीय शिक्षा बोर्ड की तर्ज पर जुलाई के बजाय अप्रैल से शिक्षा सत्र शुरु कर दिया गया है। इसके वावजूद स्कूलों में छात्र उपस्थिति नाम मात्र की है। बहुत से स्कूलों में इसी कारण शिक्षण कार्य भी शुरु नहीं किया गया।

एक इंटर कालेज के प्रधानाचार्य ने तो यहां तक कह दिया कि जब छात्र ही नहीं तो क्या दीवारों को पढ़ायें?

इस समस्या के बाद जुलाई में ऐसे स्कूलों में एक नयी समस्या खड़ी होने वाली है जिसमें छात्रों और अध्यापकों में झगड़े-फसाद होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। ऐसे में कई प्रधानाचार्य अभी से सतर्क हो गये हैं।

रामसरनदास स्मारक इंटर कालेज सलेमपुर गोसाईं के प्रधानाचार्य डीपी सिंह का कहना है कि शासन का आदेश मानना उनका फर्ज और कानूनी बाध्यता है। इसलिए वे नयी प्रणाली के तहत शिक्षण कार्य में जुटे हैं। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि हमारे प्रदेश की जो पुरानी शिक्षा व्यवस्था का कार्यक्रम तय किया गया था, वह शिक्षाविदों, और नीति—नियंताओं, सामाजिक पृष्ठभूमि, समय, मौसम तथा लोगों के व्यवसाय आदि की गहन पड़ताल के बाद किया तथा तत्कालीन शासन ने उसे लागू किया।

अप्रैल, मई और जून ग्रामीण परिवेश में व्यस्ततम समय होता है। किसान और मजदूर सभी मिलकर जहां कृषि के कार्यों में संलग्न होते हैं वहीं विवाह आदि के कार्य भी सबसे अधिक इसी दौरान संपन्न होते हैं। परीक्षाओं के समापन के बाद छात्र भी थोड़ा मानसिक आराम चाहते हैं। ऐसे में जुलाई से नया शिक्षा सत्र शुरु करने की परंपरा देशकाल के अनुरुप थी। स्कूलों में छात्रों की नाम मात्र की उपस्थिति का यही कारण है। कुछ छात्र व अध्यापक छुट्टियां लेकर बीच—बीच में नहीं आ रहे और कई बिना छुट्टी के ही रुके हैं।

gp-singh-gyan-bharti-gajraulaज्ञान भारती इंटर कालेज के प्रधानाचार्य जीपी सिंह से हमने सवाल किया था कि लोग छात्रों की तीन माह में दोगुनी फीस क्यों देंगे। नया सत्र पुराना सत्र समाप्त करके ही शुरु होता है। जब अप्रैल से नया सत्र शुरु हुआ है तो पिछला सत्र 31 मार्च को समाप्त हो चुका। ऐसे में छात्रों से अप्रैल, मई और जून की फीस नये सत्र में ही ली जानी चाहिए। जब पिछला सत्र मार्च में समाप्त हो गया तो 31 मार्च के बाद एक भी दिन की फीस नहीं ली जा सकती। जबकि सभी स्कूल मार्च में खत्म सत्र की फीस जून माह तक ही वसूलेंगे। ऐसे में इन तीन माह की फीस इस साल दो बार ली जायेगी। जीपी सिंह का कहना था कि हम लोग शासन के नियम और कानूनों से बंधे हैं इसलिए जो शासनादेश या विभागीय सिस्टम होगा उसका पालन हमारी प्रतिबद्धता है।

सत्र बदलाव का झटका खतरनाक भी हो सकता है

अभी यह भी पता नहीं कि दसवीं और बारहवीं कक्षाओं के परीक्षा परिणाम कबतक आयेंगे। कॉपियां जांचने पर विवाद के कारण विलंब हो गया है। फिर भी प्रतिवर्ष की तरह जून से पहले यह नामुमकिन लगता है। ऐसे छात्र परीक्षा परिणामों की प्रतीक्षा में है। उनका कहना है कि उसके बाद एडमीशन की सोचेंगे। हालांकि नये शासनादेश के मुताबिक सभी को अप्रैल में एडमीशन लेना होगा। वे अगली कक्षाओं में पढ़ें। बाकी परिणामों के बाद अनुत्तीर्ण छात्रों को फिर से पिछली कक्षाओं में जाना पड़ेगा। इसपर कम ही छात्र ध्यान रहे हैं और अभी स्कूलों की ओर नहीं झांक रहे।

ऐसे छात्र जब जुलाई में पहुंचेगे तो उनसे फिर से पिछले तीन माह की फीस मांगी जायेगी। पहले ही फसलों की बरबादी झेल रहे मरणासन्न उनके अभिभावकों के सिर पर यह हथौड़े की चोट से भी खतरनाक वार होगा। इसमें कई जगह झगड़ों की संभावना भी है। एक माह की फीस मुश्किल से जुगाड़ होगा और तीन माह का अतिरिक्त भार बिल्कुल ही अन्यायपूर्ण और असहनीय होगा। कहीं आत्मघाती घटनाओं के पहले ही चालू सिलसिले में और इजाफा न हो जाये?

टाइम्स न्यूज़ गजरौला.