हम देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के मतदाताओं की मनःस्थिति और यहां की सत्ता के लिए छटपटा रहे प्रमुख दलों की ताजा स्थिति पर विचार कर रहे हैं। लोकसभा चुनाव में बहुसंख्यक वर्ग में हुए एतिहासिक ध्रुवीकरण ने जहां भाजपा को 80 में से 73 सीटों पर जीत दिलायी, वहीं राज्य की सत्ता पर दो साल से राज कर रही सपा को मात्र चार सीटों पर ही जीत मिल सकी थी।
लेकिन उसके बाद विधानसभा की उन सभी सीटों पर भाजपा को हार का मुंह देखना पड़ा जिनपर वह उपचुनाव से पहले काबिज थी। इन चुनावों में सपा लगभग सभी सीटों पर विजयी हुई। कई सीटों पर भाजपा दूसरे स्थान से भी नीचे चली गयी। उपचुनावों में बसपा और रालोद का मैदान से बाहर रहना भी परिणामों को प्रभावित करने का बड़ा कारण था।
आगामी विधानसभा चुनाव में सपा, बसपा, भाजपा और कांग्रेस प्रमुख प्रतिद्वंदी दल होंगे। आम आदमी पार्टी भी चुनावी दंगल का एक मजबूत पक्ष होगा। वैसे ’आप’ पंजाब विधानसभा चुनावों पर अपना ध्यान केन्द्रित करने में लगी है। वहां के चुनावी परिणामों पर उसका अभियान यहां तय होगा। इसलिए मैं केवल सपा, बसपा, भाजपा और कांग्रेस की स्थिति पर विचार कर रहा हूं।
सपा सरकार कानून व्यवस्था के नाम पर बुरी तरह विफल है। किसान, मजदूर और ग्रामीण सबसे दुखी हैं। सरकारी कार्यालयों में भ्रष्टाचार चरम पर है। सपा सुप्रीमो के सजातीय अधिकारियों का सभी विभागों में बोलबाला है। दूसरी बिरादरियों के साथ भेदभाव की शिकायतें आम हैं। सूबे में जितने किसानों की मौत और आत्महत्यायें इस साल हुई हैं वह अपने आप में रिकार्ड है।
ग्रामांचलों में गरीब पशु पालक खुलेआम लूटे जा रहे हैं। मांस कारोबारियों के गुरगे जबरन किसानों के पशु खोलकर ले जाते हैं। जंगलों में उनका वध कर दिया जाता है।
अकेले अमरोहा जनपद में कोई भी दिन ऐसा नहीं जाता जब इस तरह की घटनायें न होती हों। विरोध करने पर किसानों को गोली मारने की घटनायें भी हो रही हैं। इसके वावजूद इस तरह की वारदातों को रोकने के लिए पुलिस प्रशासन कोई ठोस पहल करने के वावजूद चैन की नींद सो रहा है। पुलिस पर सपा के ताकतवर नेताओं का भारी दबाव है। इससे पशु चोरों के हौंसले बुलंद हैं। पशु चोरों के खिलाफ रिपोर्ट तक दर्ज कराना आसान काम नहीं। सैकड़ों लोगों के धरना-प्रदर्शन या भाकियू के दबाव पर मुश्किल से चंद मामले दर्ज होते हैं। अमरोहा और संभल जनपदों में पशु चोरों का सबसे अधिक आतंक है। बहुत से लोगों ने पशु पालने बंद कर दिये तथा जगलों में पशु चराना तक दुश्वार हो गया है। इसमें दलित और मुस्लिम किसान सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं। गंगा के खादर में सबसे बुरा हाल है।
इस समय सबसे पीड़ित वही वर्ग है जिसने विधानसभा चुनाव में सपा को विजय दिलाई थी और लोकसभा चुनावों में भाजपा का साथ दिया था। इन लोगों के सामने रोजी-रोटी की सबे बड़ी समस्या उत्पन्न हो गयी है। न तो राज्य की सपा सरकार और न ही केन्द्र की भाजपा सरकार उनकी पहाड़ सी मुसीबतों का हल निकालने के प्रति गंभीर है। ऐसे में इस वर्ग के लोगों के दिल में दोनों ही दलों की सरकारों के प्रति बेहद रोष है।
भले ही सत्ता में मदांध सपा और भाजपा के नेताओं को सबकुछ ठीक दिखाई दे रहा हो लेकिन यहां हालात ऐसे हैं कि दोनों दलों के प्रति लोगों में इतना आक्रोश और घृणा है कि यदि उनका बस चले तो, पता नहीं उन्हें वे क्या सजा दे बैठें? चुनाव से बेहतर मौका उन्हें नहीं मिलने वाला।
उधर बसपा और कांग्रेस सत्ता के लड्डू को गटकना चाहती हैं लेकिन गाल बजाऊ बहस या एक दूसरे के खिलाफ बयानबाजी से आगे कुछ नहीं करने को तैयार।
सूबे की जनता का बहुमत सत्ताधीशों के खिलाफ पहले भी होता रहा है। लेकिन वह अच्छा विकल्प तलाशने के बजाय सत्ताविरोध तक सीमित रहा है। इससे लंबे समय से बदल-बदल कर बसपा और सपा को मौका मिलता रहा है।
लोगों में भाजपा और सपा विरोधी तगड़ा रुझान सूबे में दिखाई दे रहा है। लेकिन बसपा या कांग्रेस में से इसे अपने हक में कौन प्रभावित करता है यही उनकी उपलब्धि होगी। राजनैतिक हालात और वातावरण बदलते देर नहीं लगती।
दिल्ली से सटे उत्तर प्रदेश के लोग आम आदमी पार्टी से भी प्रभावित हो सकते हैं। इस दल ने बहुत ही अल्पकाल में भ्रष्टाचार पर किसी सीमा तक अंकुश लगाया है। बिजली और पीने के पानी की दरों में कमी की है तथा विपरीत राजनैतिक माहौल व भाजपा और कांग्रेस जैसे दिग्गज राष्ट्रीय दलों के केन्द्र में सफलता के जो झंडे गाड़े हैं, उससे यूपी की जनता खासकर पिछड़ों, दलितों, किसानों और अल्पसंख्यकों में केजरीवाल के प्रति आकर्षण और उम्मीद का संचार हो रहा है।
यदि टीम केजरीवाल कुशल रणनीति के तहत चुनावी तैयारी में जुट गयी तो सपा का विकल्प बन सकती है। आम आदमी पार्टी के सामने सबसे बड़ा संकट जिताऊ उम्मीदवारों की तलाश का है। जातीय गुटबंदी यहां साफ-सुथरी राजनीति की राह का एक और विशाल अवरोध है। क्या केजरीवाल के पास इस अवरोध को हटाने का कोई कारगर उपाय है?
-जी.एस. चाहल.