हस्तिनापुर वन क्षेत्र में वन सम्पदा का अवैध दोहन

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हस्तिनापुर वन क्षेत्र का एक बड़ा भू-भाग अमरोहा जनपद में आता है। यह भू-भाग जनपद की मंडी धनौरा तहसील के खादर में है। मंडी धनौरा स्वयं में एक वन रेंज है जहां रेंजर इस क्षेत्र का प्रमुख है। इसी के साथ जनपद के विभागीय अधिकारियों का यहां बराबर हस्तक्षेप रहता है। देखा जाये तो हसनपुर और मंडी धनौरा दोनों तहसीलों में ही जिले का सारा वन्य क्षेत्र समाहित है। केवल अंतर यह है कि मंडी धनौरा हस्तिनापुर वन्य जीव संरक्षित क्षेत्र का हिस्सा है जबकि हसनपुर एक सामान्य वन क्षेत्र है।

हसनपुर वन क्षेत्र में एक ऐसा इलाका भी है जहां बेशकीमती लकड़ी के पुराने और विशालकाय वृक्ष हैं लेकिन मंडी धनौरा वन क्षेत्र में बेशकीमती वन्य औषधियां, सौन्दर्य प्रसाधनों में काम आने वाले पेड़-पौधों के साथ ही अपार वन संपदा है। कई प्रकार के जंगली जानवरों को भी यहां संरक्षित किया गया है।

मंडी धनौरा वन क्षेत्र यहां के विभागीय अधिकारियों, लकड़ी माफियाओं तथा औषधि जड़ी-बूटियों के तस्करों का केन्द्र बन चुका है। प्राकृतिक संपदा में बेहद अमीर इस वन्य क्षेत्र की लूट लंबे समय से जारी है। कई सफेदपोश नेताओं के संरक्षण में यह लूट बंद या मंद होने के बजाय दिनों दिन तरक्की के आयाम स्थापित करने में संलग्न है। गंगा तटवर्ती यह क्षेत्र ऐसा है जहां धनौरा के कई पत्रकार भी वन संपदा की लूट की बहती गंगा में हाथ धोते रहते हैं। यही कारण है कि प्रतिवर्ष करोड़ों की लूट कभी भी यहां आने वाले लोकप्रिय दैनिकों में सुर्खियां नहीं बन सकी।

यहां सरकण्डे से मिलती-जुलती एक घास पायी जाती है। उसकी जड़ों का कूलर में बहुतायत से प्रयोग होता है। लोग इसे खस का नाम देते हैं। पुराने जमाने में खस की टट्टियां बड़े लोगों के भवनों में गरमी से बचाव में काम आती थीं। कई जगह आज भी उनका प्रयोग होता है। ये जड़े उतनी महत्वपूर्ण नहीं जितना इनसे निकला तेल। यह तेल आजकल 25 से तीस हजार रुपये प्रति किलो तक बिक रहा है। इत्र जैसे खुशबूदार उत्पादों में यह मिलाया जाता है।

इस घास के विशेषज्ञ वन रेंजर की मिलीभगत से दिसंबर माह में घास खोदकर जड़ें ले जाते हैं और विशाल आय कर मालामाल हो रहे हैं। गढ़मुक्तेश्वर का एक गिरोह वर्षों से यहां सांठगांठ किये हुए हैं तथा प्रतिवर्ष अवैध कारोबार से लाखों-करोड़ों कमा रहा है। वन रेंज अधिकारी का इसमें पूरा सहयोग रहता है। उसे एक निश्चित रकम मिल जाती है। यही कारण है कि यहां आने वाला कोई भी अधिकारी आसानी से जाना नहीं चाहता।

खस के अलावा लकड़ी चोरों का कारोबार भी यहां निर्बाध रुप से जारी रहता है। वन क्षेत्र में बसे कई गांवों से लोगों ने बताया कि यहां से बेशकीमती लकड़ी के पेड़ कटते रहते हैं जिसमें वन कर्मियों का हाथ होता है। शेरपुर, ढ्योटी, मुकारमपुर, जाटों वाली, सींसोवाली आदि गांवों के लोगों को इस बारे में काफी जानकारी है।

पतझड़ के दौरान सूख कर गिरे पत्तों को बिना नीलामी के वन क्षेत्र में लगे ईंट भट्टों और वन क्षेत्र की सीमा से सटे क्रेशरों और भट्टा चालकों को बेचा जाता है। इसी से करोड़ों के वारे—न्यारे प्रतिवर्ष होते हैं। वन विभाग के अधिकारी वन संपदा को लुटाने और लूटने में संलग्न हैं।

वन्य पशुओं के अवैध शिकार की शिकायतें भी कम नहीं हैं। हिरन व नीलगायों के साथ खरगोश मारे जाने की घटनायें कम नहीं हो रहीं। इसमें कई सफेदपोश भी शामिल हैं जिसके कारण विभागीय अधिकारी भी खामोशी धारण किये रहते हैं। वैसे भी कई तरह की लूट में जब वे लोग शामिल हैं तो दूसरों को कैसे रोक सकते हैं। 

बड़े पैमाने पर वन विभाग की भूमि किसानों ने अवैध रुप से जोत रखी है। किसानों का कहना है कि उनसे राजस्व विभाग तथा वन विभाग के कर्मचारी वसूली करते हैं। कई जगह तालाबों तक को वन विभाग के भ्रष्ट अधिकारियों ने ठेके पर दे रखा है।

हम अगले अंकों में वन क्षेत्र के कुछ ऐसे लोगों के बयान प्रकाशित करेंगे। जिनके सामने इस तरह की वारदातें वर्षों से जारी हैं तथा शिकायतों के वावजूद विभागीय कारिंदों ने कोई ध्यान नहीं दिया।

-टाइम्स न्यूज़ गजरौला.