प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, उनके मंत्री, भाजपा सांसद और भाजपा के प्रवक्ता, कुछ ऐसे पत्रकार बंधु जो भाजपा सत्ता का गुणगान करने में मध्यकालीन भाट और चरणों को भी पीछे छोड़ चुके, प्रचार करने में जुट गये हैं कि नया भूमि अधिग्रहण बिल किसानों की भलाई के लिए लाया जा रहा है। इन सभी का कथन उस पौराणिक कथा की तरह लगता है जिसमें एक बूढ़ा बगुला एक तालाब की मछलियों को सूखा पड़ने का झूठा झांसा देकर खाने में सफल हो गया था। बार-बार किसान विरोधी बिल को किसान हितैषी बताने पर मुझे वह कहानी बरबस स्मरण हो आयी। जिसे यहां उद्धृत किया जाना समय की जरुरत है।
मछलियां पकड़ने में जब एक बूढ़े बगुले को भारी दिक्कत होने लगी तो उसने मछलियों को खाने की एक सरल युक्ति निकाली। वह तालाब के किनारे रोनी सूरत बनाकर खड़ा हो गया। मछलियों ने इससे पूर्व उसे कभी ऐसे दैन्य भाव में नहीं देखा था। मछलियों ने यह सब देखकर जिज्ञासावश पूछा तो बगुला अधीर होकर बोला -भविष्यवक्ताओं ने बताया है कि इस तालाब का पानी बिल्कुल सूख जायेगा। मुझे आप सबकी चिंता है कि पानी सूख गया तो आप में से कोई नहीं बचेगी।
भोली मछलियां बगुले के बहकावे में आ गयीं और पूछ बैठीं कि आखिर इसका कुछ उपाय भी है? बगुला समझ गया कि अब बात बन गयी। उसने कहा कि यहां से कुछ दूरी पर एक जल से लबालब ऐसा तालाब है जो कभी नहीं सूखने वाला। मैं एक—एक कर आपको कुछ दिनों में धीरे-धीरे वहां पहुंचा सकता हूं। इसके अलावा कोई चारा नहीं। मछलियां बेचारी भयभीत थीं। उन्होंने बगुले की बात पर भरोसा कर लिया। वे एक-एक कर जाने को तैयार हो गयीं।
बगुले की योजना सिरे चढ़ चुकी थी। वह एक-एक मछली को अपनी भूख के अनुसार ले जाता था और तालाब से दूर एक स्थाल पर रखे पत्थर पर पटक-पटक कर आसानी से मछलियां खाता रहा। यह क्रम कई दिनों तक चलता रहा और धीरे-धीरे सारी मछलियां खत्म होने को आयीं। बगुले की सेहत इतने समय में सुधर चुकी थी। एक केकड़े को शक हुआ। उसने बची मछलियों से कहा कि रुको इस बार मैं जाता हूं। अभी तक मछिलयां ही जा रही हैं। आखिर अल्पसंख्यकों को भी स्थान मिलना चाहिए। मछलियां मना नहीं कर सकीं और बगुला भी सोच रहा था कि आज जायका बदलने का मौका मिलेगा -इसलिए बगुला केकड़े को ले जाने को तैयार हो गया। वह चोंच में नहीं जा सकता था अतः बगुले की पीठ पर सवार हो गया।
केकड़ा चालाक था। उसे बगुला भक्ति पर संदेह था -उसने ऊपर से निगाह दौड़ाई तो वह पत्थर तथा मृत मछलियों के वहां अवशेष उसे दिखाई पड़े। उसे सारा माजरा समझते देर नहीं लगी। उसने उतरने से पहले ही बगुले की गर्दन अपने जबड़ों में दबोच ली। बगुला नीचे उतरा और इस अप्रत्याशित आक्रमण से भयभीत हो जीवन की भीख मांगने लगा। केकड़े ने उसे वापस तालाब पर छोड़ने का दबाव बनाया तो बगुला घायल अवस्था में ही तालाब पर वापस आ गया। वहां बगुले को केकड़े ने चबा लिया तथा शेष बची मछलियों को सारी दास्तान सुनायी। मछलियों को अपने भोलेपन पर दुख और पश्चाताप था लेकिन बगुले की भेंट चढ़ी मछलियों को पुनर्जीवित नहीं किया जा सकता था।
खेती-किसानी के सरकारी मकड़जाल के शिकार न जाने कितने किसान आयेदिन मौत को गले लगा रहे हैं। उन्हें राहत देने के नाम पर हर नयी सरकार पिछली सरकारों से भी खतरनाक फन्दे तैयार कर रही हैं। भोले किसानों को भोली मछलियों की तरह ठगे जाने के बावजूद कोई केकड़ा नहीं मिल रहा बल्कि नये-नये बगुले भेष बदलकर प्रकट हो रहे हैं। नया भू-अधिग्रहण बिल इस श्रंखला की और कड़ी है।
-जी.एस.चाहल.
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मछलियां पकड़ने में जब एक बूढ़े बगुले को भारी दिक्कत होने लगी तो उसने मछलियों को खाने की एक सरल युक्ति निकाली। वह तालाब के किनारे रोनी सूरत बनाकर खड़ा हो गया। मछलियों ने इससे पूर्व उसे कभी ऐसे दैन्य भाव में नहीं देखा था। मछलियों ने यह सब देखकर जिज्ञासावश पूछा तो बगुला अधीर होकर बोला -भविष्यवक्ताओं ने बताया है कि इस तालाब का पानी बिल्कुल सूख जायेगा। मुझे आप सबकी चिंता है कि पानी सूख गया तो आप में से कोई नहीं बचेगी।
भोली मछलियां बगुले के बहकावे में आ गयीं और पूछ बैठीं कि आखिर इसका कुछ उपाय भी है? बगुला समझ गया कि अब बात बन गयी। उसने कहा कि यहां से कुछ दूरी पर एक जल से लबालब ऐसा तालाब है जो कभी नहीं सूखने वाला। मैं एक—एक कर आपको कुछ दिनों में धीरे-धीरे वहां पहुंचा सकता हूं। इसके अलावा कोई चारा नहीं। मछलियां बेचारी भयभीत थीं। उन्होंने बगुले की बात पर भरोसा कर लिया। वे एक-एक कर जाने को तैयार हो गयीं।
बगुले की योजना सिरे चढ़ चुकी थी। वह एक-एक मछली को अपनी भूख के अनुसार ले जाता था और तालाब से दूर एक स्थाल पर रखे पत्थर पर पटक-पटक कर आसानी से मछलियां खाता रहा। यह क्रम कई दिनों तक चलता रहा और धीरे-धीरे सारी मछलियां खत्म होने को आयीं। बगुले की सेहत इतने समय में सुधर चुकी थी। एक केकड़े को शक हुआ। उसने बची मछलियों से कहा कि रुको इस बार मैं जाता हूं। अभी तक मछिलयां ही जा रही हैं। आखिर अल्पसंख्यकों को भी स्थान मिलना चाहिए। मछलियां मना नहीं कर सकीं और बगुला भी सोच रहा था कि आज जायका बदलने का मौका मिलेगा -इसलिए बगुला केकड़े को ले जाने को तैयार हो गया। वह चोंच में नहीं जा सकता था अतः बगुले की पीठ पर सवार हो गया।
केकड़ा चालाक था। उसे बगुला भक्ति पर संदेह था -उसने ऊपर से निगाह दौड़ाई तो वह पत्थर तथा मृत मछलियों के वहां अवशेष उसे दिखाई पड़े। उसे सारा माजरा समझते देर नहीं लगी। उसने उतरने से पहले ही बगुले की गर्दन अपने जबड़ों में दबोच ली। बगुला नीचे उतरा और इस अप्रत्याशित आक्रमण से भयभीत हो जीवन की भीख मांगने लगा। केकड़े ने उसे वापस तालाब पर छोड़ने का दबाव बनाया तो बगुला घायल अवस्था में ही तालाब पर वापस आ गया। वहां बगुले को केकड़े ने चबा लिया तथा शेष बची मछलियों को सारी दास्तान सुनायी। मछलियों को अपने भोलेपन पर दुख और पश्चाताप था लेकिन बगुले की भेंट चढ़ी मछलियों को पुनर्जीवित नहीं किया जा सकता था।
खेती-किसानी के सरकारी मकड़जाल के शिकार न जाने कितने किसान आयेदिन मौत को गले लगा रहे हैं। उन्हें राहत देने के नाम पर हर नयी सरकार पिछली सरकारों से भी खतरनाक फन्दे तैयार कर रही हैं। भोले किसानों को भोली मछलियों की तरह ठगे जाने के बावजूद कोई केकड़ा नहीं मिल रहा बल्कि नये-नये बगुले भेष बदलकर प्रकट हो रहे हैं। नया भू-अधिग्रहण बिल इस श्रंखला की और कड़ी है।
-जी.एस.चाहल.
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