मांझी के महादलित मंत्र में सत्ता के मानक

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सितंबर-अक्टूबर में बिहार विधानसभा के चुनाव और उसी समय यूपी में पंचायत चुनाव होने हैं। प्रमुख दलों ने दोनों राज्यों में रणनीति शुरु कर दी है। दोनों ही राज्यों में जातीय राजनीति का बोलबाला है। उत्तर प्रदेश में नरेन्द्र मोदी ने लोकसभा चुनाव में साम्प्रदायिकता के चलते हिन्दू जातीय विभाजन को एक मंच पर लाकर जहां भाजपा को एतिहासिक विजय दिलायी। वहीं अल्पसंख्यक समाज के मतदाता सपा के पक्ष में एकजुट होने के बावजूद उसे पराजय से नहीं रोक सके। आजाद भारत में पहली बार सबसे अधिक मुस्लिम आबादी के राज्य में एक भी मुस्लिम उम्मीदवार विजय हासिल नहीं कर पाया। जबकि बिहार में भाजपा बहुमत प्राप्त करने के वावजूद यूपी जैसा करिश्मा करने में सफल नहीं हो सकी। भाजपा अपनी पूरी ताकत इस बार बिहार में झोंकना चाहती है। उसे वहां भाजपा बनाम संपूर्ण विपक्ष की स्थिति से जूझना पड़ेगा।

नितीश कुमार और लालू प्रसाद यादव के एकजुट होने के साथ ही बिहार में वामपंथी दल भाजपा को सत्ता से दूर रखने के लिए महागठबंधन में शामिल हो रहे हैं। सपा भी इस पकती खिचड़ी का एक घटक है लेकिन न तो बिहार में उसका कोई प्रभाव है और न ही उसकी पकड़ की फिलहाल कोई संभावना। उधर कांग्रेस भी अभी महागठबंधन के बारे में पूरी तरह आश्वस्त नहीं है। जैसे-जैसे चुनाव का समय नजदीक आता जायेगा, वैसे ही वैसे भाजपा विरोधी दल, उसके भय से एकजुट होने शुरु होने लगेंगे।

लालू प्रसाद, जितिनराम मांझी को भी महागठबंधन में लेने के प्रबल समर्थक हैं जबकि मुख्यमंत्री नितीश कुमार इसके खिलाफ हैं। यह पेंच अभी फंसा है। हालांकि मांझी अभी यह स्पष्ट नहीं कर रहे कि वे अपनी नौका को किस किनारे लाना चाहते हैं। भाजपा ने उनपर डोरे डालने शुरु कर दिये हैं। मांझी के पास तीन विकल्प हैं। पहला -वे भाजपा से हाथ मिलायें, दूसरा वे महागठबंधन से ताल बैठायें और तीसरा वे एकला चलो की नीति का पालन करते हुए अपने बल पर मैदान में कूदें।

बिहार का चुनाव आज भी जातीय समीकरणों के आधार पर तय होता है। यहां महादलितों की अठारह जातियां हैं। मांझी इन्हीं में आते हैं। उन्होंने मुख्यमंत्री रहते हुए इनको एकजुट करने का भरपूर प्रयास किया था। मध्य बिहार में यदि यह गुट एकजुट होकर, निर्भयता से मांझी के पक्ष में खड़ा हो गया तो भारी संख्या में चुनावी नतीजों को प्रभावित करने का दम रखता है। परंतु न तो मांझी इस गठबंधन को इतना मजबूत कर पाये कि वे एकजुट होकर उनके साथ खड़े रह सकें और न ही वे पिछड़े तथा मुस्लिम मतों के बीच लोकप्रिय बन सके। फिर भी यह मानना पड़ेगा कि यदि वे भाजपा के साथ खड़े हो गये और कांग्रेस महागठबंधन से दूरी बनाते हुए अकेले मैदान में उतरी तो भाजपा को बिहार में सत्ता से कोई नहीं रोक सकता।

बिहार में भाजपा को पराजित करने के लिए जदयू, राजद, वामपंथी तथा कांग्रेस को एक मजबूत और स्वार्थ रहित गठबंधन के रुप में खड़ा होना होगा। यदि मांझी भी इसमें जुड़ जायें तो भाजपा को बिहार में बुरी तरह पराजित होना पड़ेगा। फिर चाहें नरेन्द्र मोदी, अमित शाह या कोई भी भाजपा नेता अपनी पूरी ताकत ही क्यों न झोंक दे।

इसके लिए जदयू, राजद, वामपंथी और कांग्रेस को गंभीरता से विचार करना होगा। यदि ये दल सीट बंटवारे को लेकर एक दूसरे से उलझते रहे तो सत्ता से कोसों दूर ही नहीं बल्कि निकट भविष्य में अपना संगठन राज्य में खड़ा रखने में भी असहज हालत में पहुंच चुके होंगे। बिहार का जातीय ढांचा बहुत मजबूत है।

-जी. एस. चाहल.