
महमूद अली उर्फ भूरे को बसपा ने बाहर का रास्ता दिखाया है। पार्टी नेता इसके लिए कुछ भी कहें लेकिन भूरे ने अभी तक इस बारे में कोई भी बयान नहीं दिया है। भूरे जिले में अपना व्यक्तिगत वजूद रखते हैं। भले ही वे कभी सपा, कभी महान दल और कभी बसपा में इधर-उधर लुढ़कते रहे हैं। मुस्लिम बाहुल्य अमरोहा जनपद की राजनीतिक नब्ज को पहचानते हैं और जिला पंचायत तथा ब्लॉक स्तरीय चुनावों में उनका कई स्थानों पर मजबूत दखल रहा है। विगत विधानसभा चुनाव में भी वे महान दल जैसी जनसमर्थन विहीन पार्टी के टिकट पर लड़कर दमदार उपस्थिति दर्ज कर चुके। सपा की आंधी में भी वे सपा उम्मीदवार अशफाक खां को अकेले अपने दम पर मजबूत टक्कर देने में सफल रहे थे। यदि सपा या बसपा से उन्हें उम्मीदवार बनाया जाता तो वे रिकॉर्ड मतों से विजयी होते। इस बार वे यहां से बसपा उम्मीदवार बनना चाहते थे लेकिन यहां के बसपा नेता उनके पक्ष में नहीं थे। भूरे अधिक हाथ-पांव मारते उससे पहले ही उन्हें बसपा से चलता करना ही बेहतर माना गया। भूरे की मजबूती से बसपा के हिन्दू नेताओं के बजाय पार्टी के मुस्लिम नेता ही असहज हो रहे थे। पहले ही भूरे के बड़े भाई महबूब अली का सबसे मजबूत नेता बनकर उभरना उनके लिए परेशानी है, ऐसे में बसपा में भूरे की शक्ति बढ़ने से उनका महत्व खतरे में था।
कुछ भी हो महमूद अली उर्फ भूरे के लिए यहां कई राजनैतिक विकल्प हैं। वे जिला पंचायत या बीडीसी चुनाव में अपनी धमक के बल पर सपा या कांग्रेस में जा सकते हैं। वे कोई और विकल्प भी ढूंढ सकते हैं और विधानसभा चुनाव में वे एक बार फिर से अपनी किस्मत आजमाने का प्रयास भी करेंगे। उनके समर्थकों की यहां अच्छी तादाद है।
-टाइम्स न्यूज़ अमरोहा.