इस बार मई माह में भी बाजारों में तरबूज और खरबूजों के दर्शन नहीं हो रहे जबकि प्रतिवर्ष इनसे बाजार मार्च में ही पटे पड़े रहते थे। जो तरबूज इक्का-दुक्का खोखों आदि पर दिखाई दे रहे हैं। ये बारहमासी बाजारों में उपलब्ध रहते हैं। ये बहुत महंगे हैं तथा स्थानीय उत्पाद बहुत सस्ते होते थे। तरबूज-खरबूजा खाने वाले इनके स्वाद को तरस गये।
इसका कारण केन्द्र सरकार की नमामि गंगे योजना है जिसके कारण एक साल में गंगा का एक बूंद पानी भी साफ नहीं हो सका जबकि गंगा किनारों के आसपास एक-एक किलोमीटर तक कृषि और बागवानी पर पाबंदी लगा दी गयी।
यहां आजकल तरबूज-खरबूजों की फसलें लहलहाती थीं। इस बार ऐसा न होने से तरबूज व खरबूजों का अकाल है। बेल वाली सब्जियां भी आने वाले दिनों में महंगी होने वाली हैं। इससे लाखों किसान परिवारों का पूरे देश में रोजगार चौपट हुआ है। हरिद्वार से बंगाल की खाड़ी तक गंगा तटवर्ती इलाकों में ऐसे लघु कृषक आजीविका की तलाश में भटक रहे हैं।
-टाइम्स न्यूज़.