काम के बंटवारे में न्याय की जरुरत

सरकारी नौकरी पेशा लोगों को अच्छे वेतन और भत्तों के साथ अनेकों सुविधायें दी जा रही हैं। मामूली क्लर्क तक के परिवार सुख पूर्वक सारी सुविधाओं को प्राप्त कर रहे हैं। रिश्वतखोरी का बोलबाला है। उसके बाद भी लोगों को चक्कर कटवाने में भी इन लोगों को महारत हासिल है। इसी के साथ वर्षों से रिटायरमेंट अवधि बढ़ाये जाने की मांग की जा रही है। केन्द्रीय कर्मचारी 60 के बजाय इस अवधि को 62 वर्ष कराने के प्रयास में हैं। हालांकि सरकार अभी इसके लिए तैयार नहीं है।

इस समय रेलवे सहित केन्द्रीय सेवाओं में पचास लाख कर्मचारी हैं। दूसरी ओर देश में करोड़ों लोग बेरोजगारी के कारण अभावों का जीवन जीने को मजबूर हैं। लम्बे समय तक सरकारी नौकरी करने वाले तथा बाद में पेंशन पाने वाले दो साल और बढ़वाना चाहते हैं जबकि ऐसे लोगों की संख्या करोड़ों में है जिन्हें उनकी पूरी जिन्दगी में एक दिन का काम भी सरकारी से नहीं मिला।

हमने आजादी मिलने पर समतामूलक समाज का सपना देखा था। अतः सभी लोगों को काम करने के भी समान अवसर मिलने चाहिए। यह अलग बात है कि योग्यतानुसार काम दिया जाये। इसी के सहारे हर व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकता है। यह तो गले उतरने वाली बात है कि सब को समान सुविधायें नहीं दी जा सकतीं लेकिन यह तो सरासर अन्याय है कि एक व्यस्क साठ साल की आयु तक सरकार द्वारा धन कमाने का अवसर प्राप्त करता है और दूसरे कई लोगों को एक दिन का भी मौका नहीं दिया जा रहा। कहा जा सकता है कि इतनी सरकारी अथवा अर्द्धसरकारी नौकरियां नहीं है तो सबको काम कैसे दिया जा सकता है?

हम कहते हैं कि सभी पढ़े-लिखे और अनपढ़ लोगों को इतनी ही रिक्तियों में काम दिया जा सकता है। उसके लिए हमें नौकरी कर रहे लोगों से यह पूछना चाहिए कि जब तुम्हारे घर में कोई चीज अपर्याप्त होती है तो क्या उसे सबको थोड़ा-थोड़ा  नहीं दिया जाता। हमें समझना होगा कि हमारा देश भी एक परिवार ही है। माना एक व्यक्ति औसतन तीस वर्ष नौकरी करता है। यदि उसे दस वर्ष काम करने के बाद सेवामुक्त कर दिया जाये तो इतने समय में एक की जगह तीन  लोगों को दस-दस वर्ष की नौकरी मिल जायेगी।

जब एम.एल.ए., एम.पी. और ग्राम प्रधान का कार्यकाल पांच वर्ष हो सकता है तो सरकारी नौकरी भी आठ या दस वर्षों से अधिक नहीं होनी चाहिए। यह तबतक होना चाहिए जबतक सभी लोगों को काम नहीं मिल जाता। ऐसे में रिटायरमेंट की आयु 62 क्या 70 वर्ष भी कर दी जाये तो कोई बुराई नहीं। इससे और भी ज्यादा लोगों को काम मिल सकता है।

यह तो और भी अन्यायपूर्ण है कि बहुत से बेहतर और उच्च शिक्षा तथा दक्षता प्राप्त नवयुवक पूरी जिन्दगी कोई भी नौकरी प्राप्त नहीं पाते तथा स्वरोजगार को उनके पास पूंजी का अभाव होता है। साथ ही सरकारी नौकरियों में बैठे घूसखोर लोग उन्हें सरकारी योजनाओं का लाभ भी उपलब्ध नहीं कराते या इतनी देर कर देते हैं कि फिर उसका कोई लाभ नहीं रहता। जबकि उनसे कम योग्यता प्राप्त युवक ठाठ से सरकारी नौकरियों का आनन्द लेते हैं। हालत यह है कि सरकारी चपरासी या पुलिस का मामूली सिपाही आलीशान मकानों में सम्मान के साथ रहता है।

काम न मिलने तथा अपने से कम योग्य और कम शिक्षित व्यक्ति को आर्थिक मोरचे पर बहुत आगे निकलने पर आजकल अनेक नवयुवक कुंठा के शिकार होकर कई तरह के अपराध कर बैठते हैं। स्थिति यहां तक खराब है कि अपहरण, लूट, डकैती और आतंकवाद की घटनाओं को इस विषमता के कारण बल मिल रहा है। ऐसे कारणों से गुमराह नवयुवकों को अराजकतत्व अपराध जगत में भेजने में सफल हो जाते हैं।

हमें धन, जमीन या जायदाद बांटने के बजाय नौकरियों के समय को ईमानदारी से बांटकर उसका हिस्सा सभी को देने का तुरंत प्रबंध करना होगा। हमारे समाजशास्त्रियों को इस मुद्दे को उठाना होगा। अर्थशास्त्र से पहले समाजशास्त्र को समझना जरुरी है।

-जी.एस. चाहल.