लाखों किसानों का निवाला निगल गयी साध्वी

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आजाद भारत के इतिहास में लाल बहादुर शास्त्री की छवि बहुत ईमानदार नेता की रही है। उन्होंने जय जवान-जय किसान का नारा ही नहीं दिया बल्कि  दोनों बातों को सच सिद्ध कर दिखाया। भारत-पाक युद्ध में भारत की विजय और खाद्यान्न के लिए तरसने वाले हमारे देश को खाद्यान्न में आत्म निर्भर ही नहीं बनाया बल्कि देश अनाज निर्यात कर दूसरे देशों की भूख समाप्त करने में भी सक्षम है। लाल बहादुर शास्त्री ने रेलवे पटरियों के दोनों ओर खाली पड़ी कृषि योग्य भूमि को भी किसानों को खेती के लिए दे दिया था।

आज की भारत सरकार न केवल इसके विपरीत किसानों की कृषि भूमि को हथियाने का प्रयास कर रही है बल्कि इससे पूर्व बनी सभी सरकारों को भ्रष्ट और किसान विरोधी कह कर कोस रही है। किसानों को कृषि से हतोत्साहित कर उन्हें दैनिक मजदूर बनाने का प्रयास किया जा रहा है। जबकि प्रचार किया जा रहा है कि किसानों और गरीबों के लिए काम हो रहा है। बड़े मीडिया समूहों को अंधाधुंध विज्ञापन देकर जनता की गाढी कमाई को लुटाया जा रहा है। ऐसे मीडिया समूहों के पत्रकार सरकारी गुणगान कर रहे हैं। उनके तो अच्छे दिन आ गये, उन्हें इससे कोई सरोकार नहीं कि गांव, गरीब और किसानों के दिल पर क्या गुजर रही है?

कई साधु और साध्वी वेशधारियों के मुंह सत्ता का खून ऐसा लगा है कि उन्होंने इतिहास में पागल बादशाह के नाम से विख्यात मोहम्मद तुगलक से होड़ शुरु कर दी है। मोदी सरकार की मंत्री उमा भारती ने नासझी में देश के लाखों परिवारों की रोजी-रोटी छीन ली। ये सभी लघु-सीमांत किसान हैं। गंगा के निकट अनंतकाल से जायद की फसलों की पीढ़ी-दर-पीढ़ी खेती करते आ रहे हैं।

नमामि गंगे योजना के लिए सत्तर हजार करोड़ मंजूर हुए हैं। सरकार के एक वर्ष के कार्यकाल में गंगा का एक चुल्लू पानी साफ नहीं हो सका। जबकि गंगा सफाई के नाम पर गंगा के तटवर्ती क्षेत्र में दोनों ओर खीरा, खरबूजा, तरबूज, कद्दू, लौकी आदि की खेती करने वालों पर पाबंदी लगा दी गयी। यह पाबंदी उमा भारती ने गत वर्ष ही लगवा दी थी। उससे अकेले उत्तर प्रदेश में ही लाखों परिवारों का पुश्तैनी रोजगार छिन गया। बिना किसी कानून और अध्यादेश के ही इन गरीबों के मुंह से निवाला छीन लिया गया। गंगा के उन तटों के आसपास आज धूल उड़ रही है। जहां गत वर्ष इन दिनों हरी-भरी बेलें लहलहाती थीं। इससे गंगा को स्वस्छ रखने में भी सहायता मिलती थी तथा पर्यावरण शुद्ध व प्राकृतिक हरियाली से भरपूर रहता था। आसपास मधुमक्खी पालन करने वालों को यह लाभ था कि परागण के दूसरे स्रोत समाप्त होने से इन बेलों के फूल मधुमक्खियों के लिए बहुत बड़ा सहारा थे। इस बार मक्खी पालकों के सामने भी संकट खड़ा हो गया है।

गंगा को प्रदूषण मुक्त कराने के लिए उसमें गिर रहे गंदे नालों, औद्योगिक इकाइयों और शहरी प्रदूषित जल को रोकना पहला काम था। जो बार-बार कहने के बावजूद नहीं किया गया। यह अच्छी तरह जाहिर हो चुका कि इस सरकार को किसानों से कोई पुरानी शत्रुता है। सुधार की जरुरत कहीं भी हो निशाना अन्नदाता ही बनाये जाते हैं। जिन किसानों के मतों से आज भाजपा सत्ता में बैठी है उसे समझना होगा कि समय आने पर यही किसान उसे सत्ता से बेदखल भी कर सकते हैं। दिल्ली के चुनावी परिणामों से मोदी सरकार को समझ आनी चाहिए। रोजगार देने के बजाय बेरोजगारी बढ़ाने का काम हो रहा है।

-जी.एस. चाहल.