कृषि से पलायन क्यों?

कृषि-से-पलायन-क्यों

यह कितनी मजेदार बात है कि कृषि प्रधान देश में किसान को सम्मान के योग्य नहीं माना गया। हमारी सरकारें भी आजाद भारत के इतिहास में उसे सम्मानित करने लायक नहीं मान पायीं। देश की सत्तर फीसदी आबादी खेती करती है जबकि यहां के उद्योग धंधे और पूरा बाजार भी कृषि पर आधारित है। देश की सीमाओं पर अपना खून बहाने वाले भी किसानों के लाल हैं। हमारे देश के मजदूरों को भी सबसे अधिक काम खेती में या खेती आधारित कारखानों में मिलता है। फिर भी कृषि से जुड़े लोगों को पद्म पुरस्कार नहीं दिया जाता।

यहां सम्मान उन लोगों को मिलता है जो खेती से कोई वास्ता नहीं रखते बल्कि खेतों में काम करने वालों से बात करने या मिलने में भी उन्हें शर्म महसूस होती है। जबकि कृषि उत्पादों से बने स्वादिष्ट व्यंजनों को लुत्फ उठाने में वे सबसे आगे हैं।

किसान अनाज, दाल, फल और सब्जियां उगाता है। जिसके लिए उसे भारी मशक्कत और खतरों के साथ-साथ पैसा भी लगाना पड़ता है। उसके माल की कीमत भी दूसरे लोग तय करते हैं। यह हाल है देश के सबसे महत्वपूर्ण तबके का।

फिल्मों में काम करने वाले, क्रिकेटर और उल्टी-सीधी लकीरें बनाने वालों को अंधाधुंध पैसा दिया जा रहा है। उन्हें सांसद और मंत्री तक बनाया जाता है। सरकारें उन्हें ब्रांड एम्बेसडर बनाती हैं और पद्म पुरस्कारों से भी नहीं सम्मानित होते हैं।

सबसे बड़ा कलाकार, समाजसेवी और खिलाड़ी तो किसान है। कृषि के हर काम में एक कला है, उसका पूरा जीवन दूसरों के पेट की आग बुझाने में लग जाता है। अतः उससे बड़ा समाजसेवी और कौन हो सकता है? उसका सारा काम एक खिलाड़ी से बेहतर और सधा हुआ है। उसके काम में विज्ञान, चिकित्सा और साहित्य सभी कुछ एक साथ चलता है। फिर भी कृषि को इन सबसे कमतर माना गया है। तभी तो लोग लगातार कृषि से पलायन कर रहे हैं। यदि यही हाल रहा तो लोग कृषि से पूरी तरह उदास हो जायेंगे। तब प्याज तो क्या सभी कृषि उत्पादों की कीमत आसमान को छूने लगेगी। कृषि का महत्व तभी समझ में आयेगा।

-जी.एस. चाहल.