अपने आप में ही यह मामला संदिग्ध है कि लगातार तेरह वर्षों तक एक इ.ओ. यहीं क्यों जमा है। एक-दो बार जैसे ही उसे अपना तबादला होने की भनक लगती है वह लखनऊ भागकर उसे रद्द करा लेता है। यह सभी जानते हैं कि आखिर इ.ओ. गजरौला क्यों नहीं छोड़ना चाहता? क्यों वह लखनऊ जाकर अधिकारियों से सांठगांठ कर गजरौला ही रहना चाहता है? ऐसा करने में समय और धन दोनों ही खर्च होते हैं। यूं ही कोई क्यों ऐसा करेगा? मामूली आदमी भी समझ सकता है कि इसमें इ.ओ. का कोई बहुत ही निहित स्वार्थ सधता है।
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लोग जानते हैं कि लंबे समय रहते हुए वह यहां के कमाऊ रास्तों से भली-भांति परिचित हो चुका। उसके द्वारा अवैध कब्जेदारों और ठेकेदारों आदि के मजबूत गुटों का सुदृढ़ नेटवर्क तैयार कर लिया गया है। सभी जानते हैं कि एक स्थान पर लंबे समय तक जमे सरकारी नौकर अवैध कमाई के रास्ते खोज लेते हैं।
महेन्द्र सिंह, रोहताश कुमार शर्मा तथा अब हरपाल सिंह, तीन नगर पंचायत अध्यक्षों के कार्यकाल में इ.ओ. कामिल पाशा का कार्यकाल जारी है। इस बीच सीओ, कई थानेदार, कई बीडीओ, कई बीइओ तथा सभी विभागों में सैकड़ों कर्मचारी आये और चले गये लेकिन कामिल पाशा के पास न जाने कौन सा पाशा है, जिसके बल पर वह गजरौला से चिपक गये हैं।
-टाइम्स न्यूज़ गजरौला.