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गजरौला में कोई नई औद्योगिक इकाई स्थापित होती है तो कोई पुरानी इकाई तब तक दम तोड़ चुकी होती है.. |
परन्तु ढाई दशक की इस अवधि में न तो गांव से नगर पंचायत बने गजरौला, न ही उससे जुड़े अन्य पांच गांवों और न ही जिले के बेरोजगारों की मनोकामनायें पूरी हुईं बल्कि लोगों के सामने कई नई समस्यायें उत्पन्न होनी शुरु हो गयीं।
यह और भी परेशानी का विषय है कि यहां स्थापित कई औद्योगिक इकाईयां बंद हो गयीं और कुछ अंतिम सांसें गिन रही हैं। ऐसी परिस्थितियों में जिन लोगों को रोजगार मिला भी फैक्ट्रियां बंद होने से वे पुनः बेरोजगार हो गये अथवा जो काम पर लगे हैं उन्हें उनका पूरा हक नहीं मिल पा रहा। अव्यवस्थित हालत और रेलवे जंक्शन के फाटकों पर बनने वाले ओवर ब्रिज तथा नेशनल हाइवे के बेहद ऊंचा उठने से यहां का बाजार चौपट हो गया। जबकि चंद पूंजीपतियों ने अपने व्यवसायिक केन्द्र स्थानांतरित कर लिए। गजरौला के ढाई दशक में यहां का विकास दो कदम आगे बढ़ा, तो तीन कदम पीछे खिसकता गया।
गजरौला नगर पंचायत में भानपुर खालसा, अल्लीपुर भूड़, नाईपुरा, फाजलपुर, और तिगरिया गांव शामिल हैं। यहां जुबिलेंट लाईफ साइंसेज लि. नामक विशाल औद्योगिक इकाई है। इसी के साथ इसराइल की टेवा एपीआई लि., अमेरिका की केमचूरा कैमी. प्रा. लि., जर्मनी की इंशिल्को लि. सहित कई विदेशी कंपनियों की फैक्ट्रियां हैं। रौनक आटोमोटिव काम्पनेंट्स लि., कामाक्षी पेपर्स लि, कोरल न्यूज प्रिन्ट लि, ए.एस.पी., तिरुपति टैक्सटाइल्स लि., श्रीजी मिल्क फूड्स लि., इराकेम लि., आदि एक दर्जन से अधिक औद्योगिक इकाईयां चल रही हैं। जबकि शिवालिक सेल्यूलोज लि., बैस्ट बोर्ड लि., रतन वनस्पति, चड्ढा रर्बस, एस.एस. ड्रग्स, सिद्धार्थ स्पिन फैब, श्री एसिड्स एंड कैमीकल्स लि., और एक मूंगफली मिल बंद हो चुकी।
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जब भी यहां कोई नई औद्योगिक इकाई स्थापित होती है तो कोई पुरानी इकाई तब तक दम तोड़ चुकी होती है। यहां कई सौ एकड़ भूमि यू.पी.एस.आई.डी.सी. की ओर से अधिगृहीत करके दशकों से पड़ी है। लेकिन किसी नई कम्पनी के स्थापित होने का आभास तक नहीं है। हालांकि यू.एस. फूड्स लि. मरणासन्न हालत में है, जबकि सी.एन.सी. मेटल मालिकों द्वारा एन.आर.एच.एम. घोटाले में अवैध रुप से यहां सामान तैयार कराकर बेचने के कारण घोटाला उजागर होते ही बंद हो गयी थी। इस छोटी सी इकाई के लगभग 80 मजदूर बेरोजगार होकर घर बैठ गये हैं। कोरल न्यूज प्रिन्ट, एएसपी और इंशिल्को की हालत भी बेहतर नहीं है।
नाम को गजरौला एक औद्योगिक क्षेत्र कहलाता है, लेकिन यहां नये उद्योग न लग पाने और पुराने उद्योग धीरे-धीरे बंद होने से जिले को कोई लाभ नहीं हुआ।
जिन किसानों की भूमि उत्तर प्रदेश औद्योगिक विकास निगम ने अधिगृहीत की है, उसमें से अभी अनेक किसानों को उचित मुआवजा न मिलने के कारण विवाद न्यायालयों में लम्बित है।
अधिकांश इकाईयों में जिले से बाहर के लोगों की नियुक्तियां की गयी हैं। स्थानीय लोगों की संख्या इन उद्योगों के कामगारों में नाम मात्र की ही है। हां ठेकेदारों के अधीन काम करने वाले मजदूरों में जिले भर के गांवों और कस्बों की संख्या अच्छी है।
प्रत्यक्ष रुप से भले ही स्थानीय लोगों को रोजगार उतना नहीं मिल पाया जितना मिलना चाहिए था। फिर भी हजारों स्थानीय परिवारों को परोक्ष रुप से रोजगार के अवसर उपलब्ध हुए हैं। जिले भर के गांवों और कस्बों से लोगों ने यहां मकान और दुकानें बना लीं। किराये पर देकर लोगों ने उसमें अपनी दुकान आदि व्यवसाय कर लिए। यही कारण है कि बाहरी लोगों के आगमन का दबाव यहां तेजी पर है।
आपस में संयुक्त होकर गजरौला नगर पंचायत के रुप में उभरी आबादी को गांव जैसी मूलभूत आवश्यकताएं पाने को भी तरसना पड़ा है। नाईपुरा में तीन वर्षों से नगर पंचायत द्वारा पीने का पानी उपलब्ध नहीं कराया गया। यहां अधिकांश दलित और मुस्लिम अल्पसंख्यक आबादी है। मजेदार बात यह है कि यहां इस समय भी दलित हरपाल सिंह चेयरमेन हैं। इनसे पूर्व भी महेन्द्र सिंह और जसराम सिंह पांच-पांच साल दलित चेयरमेन रह चुके हैं।
यहां से गुजर रहे राष्ट्रीय राजमार्ग के विस्तार ने दो किलोमीटर पट्टी में सड़क के दोनों ओर बसे दर्जनों ढाबों और कई तरह की दुकानों के सहारे रोजी रोटी कमाने वालों की आजीविका के साधन छीन लिए। इस तरह के सैकड़ों लोगों का यहां के विकास के नाम पर भारी विनाश हो गया है। अल्लीपुर चौपला से थाना चौक तक लगभग सात सौ मीटर लम्बे यहां के मेन बाजार को रेलवे क्रासिंग पर ओवर ब्रिज से बड़ा झटका लगा है। यहां की दुकानें चौपट होती जा रही हैं और मकानों तथा दुकानों के किरायेदार पलायन कर रहे हैं। हालांकि इस ओवर ब्रिज से आयेदिन लगने वाले जाम से स्थानीय और बाहरी लोगों को भारी राहत मिलेगी। यहां प्रांतीय राजमार्ग गुजरता है। इसी से यहां के ट्रैफिक का अनुमान लगाया जा सकता है।
यहां तीन बिजलीघर हैं। एक औद्योगिक क्षेत्र के बीच और दो शेष आबादी के मध्य लेकिन लोगों को ग्रामीण क्षेत्र से भी कम विद्युत आपूर्ति की जाती है। वैसे यहां के 132 के.वी. विद्युतगृह से हसनपुर, बछरायूं, रजबपुर, मंडी धनौरा, सिहाली, खादगूजर के बिजलीघरों को भी विद्युत आपूर्ति की जाती है।
-जी.एस. चाहल.
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