नदियां हकीकत में हमारी जीवन रेखायें हैं। उनकी सफाई रखना हमारा धर्म है। गंगा नदी देश की सबसे पवित्र नदी मानी जाती है। भारतीय संस्कृति उसकी सदियों से क्या? यहां जन्मी मानव सभ्यता के आदिकाल से उसके महत्व को समझते हुए उससे बेहद स्नेह और आस्था रखती है। जन्म से मृत्यु तक भारतीय मानव उससे जुड़ाव रखना चाहता है बल्कि मृत्यु के बाद भी कई संस्कार गंगा से एकाकार रहते हैं। हमारी कृषि, पशु, पक्षियों और प्रकृति को उससे जीवन मिलता है। यह कितने दुख की बात है कि इतनी अद्वितीय और बहुउपयोगी, जीवनदायिनी नदी को हम लगातार प्रदूषित करने पर तुले हैं। इससे भी बढ़कर उसके प्राकृतिक बहाव को हम स्वार्थवश अवरुद्ध करने पर तुले हैं। उसकी गंदगी पर दुख, क्षोभ और आपत्ति तो प्रकट करते हैं लेकिन रचनात्मक रुप से उसकी निर्मल जलधारा के लिए कुछ भी करने को तैयार नहीं। यदि सच कहा जाये तो गंगा के पुजारी और उपासक ही उसे प्रदूषित करने में सबसे अधिक संलग्न हैं।
हरिद्वार से लेकर समुद्र में गंगा के किनारे अनेक स्थानों पर विभिन्न धार्मिक कर्मकांडों का आयोजन किया जाता है। कई स्थानों पर विराट मेलों और स्नान पर्वों का आयोजन वर्ष में कई बार किया जाता है। कुंभ और अर्द्धकुंभ जैसे बहुत विराट आयोजनों में भी अथाह जनसमूह गंगा तट पर एकत्र होता है। पूजा अचर्ना, कथा, कीर्तन, दान पुण्य, मृतकों के अंतिम संस्कार, खुशी गमी के मौकों पर गंगा के किनारे लोग पहुंचते ही हैं। इस दौरान गंगा जल को सबसे अधिक प्रदूषित किया जाता है।
ब्रजघाट और तिगरी में प्रतिदिन भारी संख्या में शवदाह किये जाते हैं जिनके अवशेष राख सहित गंगा में फेंक दिये जाते हैं। इसी के साथ फूल पत्तियां तथा दीपक आदि भी गंगा में बहा दिये जाने से जल में प्रदूषण बढ़ता है। इसके लिए विद्युत शवदाह गृह बनाये जाने चहिए। मृतकों के फूल गंगा जल से स्पर्श कर उन्हें गंगा तट से दूर कहीं भी भूगर्भ में दबाया जा सकता है। ऐसा करने से गंगा नदी के प्रदूषण में निश्चित कमी आयेगी।
आयेदिन आने वाले पर्वों तथा प्रत्येक पूर्णिमा और अमावस्या पर लोग गंगा स्नान और पूजा पाठ को आते हैं। लोग वहां फूल-पत्ते, मालायें न जाने क्या-क्या गंगा में चढ़ाते हैं। उससे भारी जल प्रदूषण होता है। गणेश चौथ पर गणेश प्रतिमायें गंगा में प्रवाहित करने का रिवाज है। इससे भी गंगा जल में प्रदूषण फैलता है।
नगरों और कस्बों के गंदे नालों तथा उद्योगों के प्रदूषित जल को भी गंगा नदी में प्रवाहित कर जल प्रदूषण को बढ़ाने में पूरी ताकत लगायी जाती है। इन कस्बों में रहने वाले और उद्योगपतियों में सबसे अधिक लोग ऐसे होते हैं जो गंगा नदी के धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व को अच्छी तरह जानते हैं तथा उसमें आस्था रखते हैं।
वास्तव में आज गंगा नदी अपने भक्तों के कारण ही अधिक प्रदूषित हो रही है। जबकि ये दोषी दूसरों को ठहराते रहते हैं। मुंडन संस्कार के बाल तक गंगा में फेंक कर पवित्र जल में गंदगी फैला रहे हैं ऐसे गंगा भक्त।
-जी. एस. चाहल