विभागीय लापरवाही से स्मृति वन की स्मृति भी शेष नहीं

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लगभग दो दशक पूर्व सिहाली जागीर और गजरौला के बीच विशाल क्षेत्र में जो हरा-भरा वन लहलहाता था। वन विभाग की लापरवाही से अब वहां रेगिस्तान जैसा नजारा है। हजारों पेड़ों से आच्छादित इस वन क्षेत्र में एक दर्जन के करीब अंतिम सांसें गिनते पेड़ मुश्किल यह भी नहीं बता पा रहे कि यहां कोई स्मृति वन है भी या नहीं।

स्मरण हो यहां सिटी फ़ॉरेस्ट या स्मृति वन के नाम से लगभग दो दशक पूर्व एक वन लगाया गया था। इसमें मुरादाबाद के तत्कालीन मंडलायुक्त बैंस की सोच और भूमिका थी। जिलाधिकारी बलविन्दर कुमार के कार्यकाल में यहां  हजारों वृक्षों का हरा भरा जंगल बन चुका था। ये वृक्ष वन विभाग के अधिकारियों की देखरेख में क्षेत्र के गणमान्य लोगों द्वारा रोपे गये थे। वृक्षों के साथ वृक्ष लगाने वालों की पट्टिकायें भी लगायी गयी थीं। 1992 में बतौर पत्रकार मैंने भी दो वृक्ष लगाये थे। इन पेड़ों की एवज में वन विभाग ने लोगों से कुछ रुपये भी लिए थे जिनकी रसीदें दी गयी थीं। विभाग ने वृक्षों के रख रखाव के लिए यह राशि ली थी।

दूर तक फैले वीरान जंगल को हराभरा बनाना तथा क्षेत्रीय लोगों की स्मृति बनाये रखने को उनकी नाम पट्टिका के साथ ये वृक्ष लगाने का उद्देश्य था। वृक्षों के रख रखाव, सिंचाई तथा पालन पोषण का दायित्व वन विभाग को सौंपा गया। एक दशक तक वन खूब लहलहाया। उसके बाद विभागीय लापरवाही से यह वन बरबाद हो गया और आज स्मृति वन की स्मृति भी शेष नहीं।

-जी.एस. चाहल.