उमा, गडकरी को जोशी की नसीहत

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भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और पार्टी के वयोवृद्ध अनुभवी नेता डा. मुरली मनोहर जोशी ने विश्व पर्यावरण दिवस के मौके पर भाजपा सरकार जो मोदी सरकार के नाम से जानी जाती है को गंगा को स्वच्छ बनाने और उसके उपयोग के ढंग पर सवाल खड़े किये हैं। साथ ही दो टूक कहा भी है, इस तरह न तो गंगा स्वच्छ हो सकती है और न ही उसे परिवहन के लिए उपयोग में लाया जा सकता है।

गंगा की स्वच्छता के लिए उमा भारती के मंत्रालय को दो हजार करोड़ रुपये मिल चुके जो चार वर्षों में खर्च होने हैं। उधर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सबसे चहेते मंत्री नितिन गडकरी गंगा और यमुना में जहाज चलाने की योजना बनाने में लगे हैं। डा. जोशी के बयान के बाद दोनों मंत्री असहज हैं। लगता है उन्हें यह पता ही नहीं कि जिस काम को वे करने जा रहे हैं तथा जनता की गाढी कमाई को उसमें खर्च करना है, यह धन खर्च करने के बाद काम होगा भी या नहीं।

डा. जोशी का कहना बिल्कुल ठीक है। उन्होंने कहा है कि गंगा का अविरल बहना ही उसकी स्वच्छता को कायम रखना है। जब तक गंगा के जल को उद्गम से लेकर उसके समुद्र में पहुंचने तक, लगे अवरोध समाप्त नहीं किये जायेंगे, तबतक वह अविरल नहीं बहेगी और उसमें प्रदूषण बढ़ता जायेगा।

पुरानी कहावत है कि अविरल बहता जल हमेशा शुद्ध रहता है। गंगा में जगह-जगह बांध बनाकर, उसमें से नहरें निकालकर गंगा को जल विहीन सा बना दिया है। उसमें बहुत ही अपर्याप्त जल है। यदि प्राकृतिक रुप से गंगा के जल को निर्बाध बहने दिया जाये तो गंगा अपनी राह की समस्त गंदगी को समुद्र में उड़ेल देगी और उसमें निर्मल जल रहेगा।

विकास और सिंचाई के नाम पर जो काम हो रहा है। उससे गंगा में सबसे अधिक प्रदूषण बढ़ा है। गंगा तटवर्ती शहरों की तमाम गंदगी, औद्योगिक इकाईयों का प्रदूषित जल तो गंगा की गंदगी को बढ़ाने में सबसे आगे हैं। अभी तक इस तरह की गंदगी को रोकने का भी कोई प्रयास नहीं हुआ। यदि डा. जोशी यह कहते हैं कि मोदी सरकार की मौजूदा नीतियों से पचास साल में भी गंगा स्वच्छ नहीं हो पायेगी, तो वे बिल्कुल ठीक कहते हैं।

नितिन गडकरी एक बड़े मंत्री और बड़े उद्योगपति भी हैं। महाराष्ट्र के जिस क्षेत्र में उनकी औद्योगिक इकाईयां हैं वहां किसानों ने सबसे अधिक आत्महत्यायें की हैं। ये महाशय बिना पानी की नदियों में जहाज चलाना चाहते हैं। जिन नदियों में नहाने और इंसान के तैरने लायक भी जल नहीं, उनमें भला जहाज कैसे चल सकते हैं? इस तरह के लोग सत्ता मिलते ही जनता के धन को ठिकाने लगाने की तरकीबें निकालने लगते हैं। डा. जोशी को मजबूर होकर बोलना ही पड़ गया। अन्यथा वे और एल.के. आडवाणी जैसे कुशल राजनीतिज्ञों से तो मोदी सरकार लगातार दूरी बनाकर चल रही है। जबकि इन दोनों नेताओं के अनुभवों का सरकार को लाभ लेना चाहिए था।

-जी.एस. चाहल.