जिस सरकार के पास पुलिस न हो, तो राज्य की कानून व्यवस्था बनाये रखने तथा लोगों की सुरक्षा के दायित्व का निर्वह वह कैसे कर सकती है। जब वह पुलिस उसकी विपक्ष की पार्टी की उससे बड़ी सरकार के अधीन हो तो भला राज्य सरकार क्या कर सकती है? ऐसी पुलिस राज्य सरकार पर दबाव बनाये रखेगी और विपक्षी दल के इशारे पर काम करने का उसपर दबाव रहेगा। बिना पुलिस की कोई भी राज्य सरकार सफलता के साथ तबतक काम नहीं कर सकती, जबतक केन्द्र का उसे आशीर्वाद प्राप्त न हो। दोनों जगह अलग-अलग दलों की सरकारों में यह कम ही संभव है।
दिल्ली में यही हो रहा है। प्रदेश में सरकार 'आप’ पार्टी की है जबकि पुलिस केन्द्र सरकार की है जो उसकी धुर विरोधी है। यही कारण है कि जानबूझकर मामूली-मामूली मामलों को लेकर 'आप’ के विधायकों तथा मंत्रियों को फंसाने के प्रयास किये जा रहे हैं। दिल्ली पुलिस दिल्ली सरकार के किसी भी आदेश पर अमल नहीं करना चाहती।
मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल जनता से किया एक-एक वायदा सिलसिलेवार पूरा करने में जुटे हैं। उन्होंने कई वायदे पूरे भी कर दिये। बिजली, पानी और शिक्षा जैसे वायदों को पूरा कर रहे हैं। जबकि उनके काम में भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दल व्यवधान पैदा करने में जुटे हैं।
सरकारी दफ्तरों में भ्रष्टाचार नाम मात्र की चीज है। इससे भ्रष्ट नेताओं, दलालों और भ्रष्ट कर्मचारियों को परेशानी होना स्वाभाविक है। मामूली-मामूली बातों को मीडिया के जरिये तोड़मरोड़ कर परोसने का भी खूब प्रयास हो रहा है। कहा जा रहा है कि केजरीवाल सरकार भी भाजपा और कांग्रेस के रास्ते पर ही चल रही है। दिल्ली वाले तो हकीकत जानते ही हैं लेकिन दिल्ली में बसे पूरे भारत के वे लोग भी सबकुछ समझ रहे हैं, जो दिल्ली से अपने गृह क्षेत्रों में आते जाते रहते हैं।
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केन्द्र की सत्ता पर बैठी भाजपा को भय है कि यदि केजरीवाल सरकार इसी तरह जनहित में काम करती रही, तो आने वाले चुनावों में उसे पराजित करना नामुमकिन होगा। वहीं दिल्ली की तरह दूसरे राज्यों से भी भाजपा का सफाया न हो जाये। लेकिन भाजपा को याद रखना चाहिए कि केजरीवाल के खिलाफ चुनावों में उसके द्वारा किये झूठे प्रचार के कारण दिल्ली की जनता ने उसका सूपड़ा ही साफ कर दिया।
दिल्ली सरकार दिल्ली को पूर्ण राज्य के दर्जे की इसलिए मांग कर रही है कि उसके काम में केन्द्र अनावश्यक व्यवधान न डाले। केजरीवाल सरकार की इस मांग का समर्थन एक सर्वे के अनुसार दिल्ली के 81 प्रतिशत लोग कर रहे हैं। यह मांग अविलंब मानी जानी चाहिए। जन आकांक्षाओं को देर तक नहीं दबाया जा सकता। यदि केन्द्र दिल्ली की जनता की इस जायज मांग की अनदेखी करेगी तो पूरे देश में उसके प्रति बेहद गलत संदेश जायेगा।
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-जी.एस. चाहल.
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