बाबा बोलते थे कहां गये?

narendra modi pm of india picture

बहुत बोलने वाले, या कहें कि भाजपा को बोल-बोल कर सत्ता तक खींच लाने वाले, नरेन्द्र मोदी की आवाज धीमी पड़ती जा रही है। देश की महत्वपूर्ण समस्याओं पर वे बुलाने से भी नहीं बोलते। जहां चुनावी सभाओं में वे दूसरों की जगह बोलते थे, आजकल उनके बोलने की जगह पार्टी के दूसरे नेता बोल रहे हैं। चरचायें होने लगी हैं कि मनमोहन सिंह की तरह नरेन्द्र मोदी भी मौन साध गये हैं। हालांकि डा. मनमोहन सिंह समय-समय पर प्रेस कांफ्रेंस में पत्रकारों के सवालों के खुलकर जबाव देते थे जबकि नरेन्द्र मोदी ने अभी तक प्रेस का सामना करने का साहस नहीं जुटाया है।

हाल ही में देश में ललित मोदी प्रकरण में राजस्थान की मुख्यमंत्री विजयराजे सिंधिया, विदेश मंत्री सुषमा स्वराज पर सहायता सहित कई तरह के आरोप लगे। स्मृति ईरानी की ओर भी उंगलियां उठीं, साथ ही महराष्ट्र सरकार की एक भाजपा की मंत्री पर करोड़ों के घोटाले के आरोप लगे। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह पर करोड़ों के चावल घोटाले के आरोप लगे। विपक्ष ने इन सभी के इस्तीफों की मांग करते हुए निष्पक्ष जांच की आवाज उठाई। इसी के साथ प्रधानमंत्री से जबाव चाहा।

हो-हल्ले को नजरअंदाज कर खामोशी के साथ विदेश यात्राओं पर निकल गये हैं। मरने वाले मरते रहें.

काफी हो-हल्ले के बीच इस तरह के गंभीर आरोपों के बावजूद प्रधानमंत्री खामोश रहे। उन्होंने पूरी तरह चुप्पी साध ली। जैसे कि कुछ हुआ ही नहीं। पता नहीं पीएम के अंदर का वक्ता कहां चला गया?

हां गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने बड़ा खुलकर जबाव दिया। उन्होंने मोदी सरकार की पोल खोलकर रख दी। उनका कहना था —'यह यूपीए सरकार नहीं, एनडीए सरकार है। इस सरकार में त्याग पत्र नहीं होते।’

इसी से पता चलता है कि मंत्री कुछ भी करें एनडीए में त्याग पत्र नहीं होगा। यह दीगर बात है कि भले ही बाद में सारी सरकार को ही क्यों न जाना पड़े। जनता ने पांच साल के लिए चुना है। अभी चार साल और बचे हैं। ऐसे में इस्तीफे की क्या जरुरत?

उधर मध्य प्रदेश में व्यापम घोटाले से संबंधित लोगों की रहस्मय मौतों का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा। आयेदिन मौतों से चारों ओर हा-हाकार है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चालीस से अधिक हुई मौतों से चैन में हैं। तो पीएम

हो-हल्ले को नजरअंदाज कर खामोशी के साथ विदेश यात्राओं पर निकल गये हैं। मरने वाले मरते रहें। आखिर केन्द्र और एमपी दोनों जगह राज अपने ही दल का है। किसी दूसरे का होता तो गला फाड़कर बोला जाता।

अरविन्द केजरीवाल के खिलाफ तो बिना जरुरत के भी कुछ भी बोला जा सकता है। अपने मन की बात के बहाने भी कुछ न कुछ बोला जाता है, लेकिन बताने के समय और जनता की जरुरत पर बोलना बंद है।

यही हाल रहा तो मोदी जी के बारे में सुनने को मिलेगा — 'बाबा बोलते थे, कहां गये?’

-जी.एस. चाहल.

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