पश्चिमी उत्तर प्रदेश कृषि उत्पादन में पंजाब और हरियाणा से किसी भी प्रकार कम नहीं। किसान महंगे खाद और बीज खरीदता है। खेती में काम आने वाले उपकरण भी महंगे होते जा रहे हैं।
आजकल डीजल इंजन के सहारे खेती नहीं की जा सकती। वही किसान थोड़ा बहुत कमा सकता है जिसके पास विद्युत नलकूप है। नहरों में पानी ही नहीं, ऐेसे में वहां भी बिजली ही सिंचाई का साधन है। महंगे डीजल और मोबिल ऑयल के भरोसे खेती करने वाला किसान कर्ज से दबकर या तो मर जायेगा या आत्महत्या कर लेगा।
इस समय मौसम की स्थिति ऐसी है कि उत्पादन की स्थिति बहुत ही खस्ता है। उद्योग धंधों और शहरी क्षेत्रों की बिजली काटकर कृषि क्षेत्र को दी जानी चाहिए।
विद्युत उत्पादन के वैकल्पिक साधनों का उपयोग भी किया जाना चाहिए इससे बिजली भले ही कुछ महंगी पड़ेगी परंतु गन्ना, धान और चारे को बचाया जा सकेगा। जब तक बरसात न हो बिजली अधिक से अधिक कृषि क्षेत्र को ही दी जानी चाहिए।
कई फैक्ट्रियां ऐसी हैं जो विद्युत उत्पादन भी कर रही हैं। उन्हें कुछ समय के लिए उत्पादन बढ़ाने को तैयार किया जा सकता है।
गजरौला की जुबीलेंट लाइफ साइंसेज लिमिटेड अधिकांश बिजली स्वयं उत्पन्न करती है। यह इकाई चाहें तो इतना विद्युत उत्पादन कर सकती है, जितनी आसपास के क्षेत्र को जरुरत है। कई अन्य मिलें भी विद्युत उत्पादन कर सकती हैं।
सरकारी तंत्र की उदासीनता की वजह से बिजली व्यवस्था में अधिक सुधार होने की उम्मीद नहीं की जा सकती। दूसरे विकल्प समय की मांग हैं। यदि इसमें विलंब हुआ तो इससे केवल किसान ही नहीं बल्कि पूरे देश की अर्थव्यवस्था पर बुरा प्रभाव पड़ेगा।
-गजरौला टाइम्स के लिए हरमिन्दर सिंह.
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