
मोदी राज के एक साल में गांवों की आर्थिक स्थिति पहले से बदतर हो गयी है और दिसंबर तक इसमें और भी गिरावट आयेगी। इसका प्रभाव व्यापार और औद्योगिक क्षेत्र पर भी पड़ना शुरु हो गया है। औद्योगिक उत्पादन में लगातार गिरावट और मांग का कम होना इसका पुख्ता प्रमाण है। देश के निर्यात में भी गत वर्ष के मुकाबले कमी दर्ज की गयी है। कृषि को जीडीपी में खास साझीदार न मानने वाले मोदी सरकार के गुजराती मॉडल अर्थशास्त्री अब कह रहे हैं कि मानसून और इंद्र देवता पर ही भरोसा है। शहरों के विकास और गांवों के विनाश के जिस मॉडल को अपनाने की तैयारी केन्द्र सरकार कर रही है, यदि वह अपनी जिद पर अड़ कर उसे पूरी करने में जुटी रही तो, उससे न तो शहरों का विकास ही हो पायेगा और न ही गांव खुशहाल हो पायेंगे। दूसरे शब्दों में यह देश की बर्बादी का मॉडल सिद्ध होगा। जहां कंकरीट के जंगल और भूतहा भवन खड़े दिखाई देंगे।
भारत कृषि प्रधान देश है। यहां 60 फीसदी लोग प्रत्यक्ष रुप से तथा पन्द्रह फीसदी परोक्ष रुप से कृषि क्षेत्र पर आश्रित हैं। सरकारी अधिकारी और कर्मचारियों की आधे से अधिक संख्या भी कृषि, गांव और उनसे संबंधित विभागों में सेवारत है। ऐसे में उपभोक्ताओं का सबसे बड़ा तबका भी कृषि व्यवसाय से संबंधित समुदाय का है जो प्रत्यक्ष और परोक्ष रुप से 80 फीसदी के करीब बैठता है। इसके उत्थान के बिना उघोगों के उत्पादों की बिक्री के सपने देखना कौनसी समझदारी है?
तमाम वस्त्रद्योग कपास के जरिये कच्चा माल प्राप्त करते हैं; जो शत प्रतिशत कृषि उत्पाद है। मरहम पट्टी आदि के लिए रुई आदि तैयार करने वाले कारखाने भी कपास के सहारे हैं। दुग्ध डेयरियां तथा मिल्क पाउडर, पनीर, क्रीम, घी, मट्ठा, आईसक्रीम सहित नाना प्रकार के दुग्ध उत्पाद करने वाले उद्योग भी पशु पालन के बिना असंभव हैं और पशु पालन, कृषि का ही एक भाग है।
फल और सब्जियों के अचार, जैम, चटनी, सॉस आदि खाद्य पदार्थ भी कृषि उत्पादों की ही देन हैं। आटा मिल, मैदा मिल, राईस मिल, बायो कैमीकल्स कंपनियां तथा चीनी मिल, शराब की इकाईयां जहां कृषि उत्पादों के बिना असंभव हैं। वहीं कृषि यंत्र, ट्रैक्टर, बिजली की मोटर, पम्पिंग सैट सहित उनके कल पुर्जे बनाने की तमाम इकाईयों के उत्पाद कृषि क्षेत्र में ही बिकते हैं।
कपड़ा, जूता, साबुन, सौन्दर्य प्रसाधन, दवाईयां तथा टीवी, बाइक, फोन और दूसरे घरेलू रोजमर्रा के सामानों के ग्राहक कृषि व्यवसायी हैं। इसलिए जबतक कृषि को प्रोत्साहन नहीं दिया जायेगा तबतक देश प्रगति नहीं करेगा।
कभी पीएम मोदी, कभी अमित शाह और उनके मंत्री भारत को विश्व गुरु बनाने के दावे कर रहे हैं। लेकिन एक वर्ष में एक भी ऐसी योजना तक नहीं बनायी जिससे कुछ ऐसा लगे कि वास्तव में अच्छा हो रहा है।
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अबतक यही प्रयास हो रहा है कि शहरों का विकास कैसे हो? किसानों की जमीन किस तरह हथियायी जाये? कृषि उत्पादों का उचित मूल्य दिलाने के बजाय उन्हें सस्ता कराया जा रहा है। बल्कि यहां तक कोशिश हो रही है कि किसान परेशान होकर कृषि छोड़ना शुरु कर दें। यह किसी भी तरह देश हित में नहीं। किसानों को बहकाना अब आसान नहीं। वे सरकार की नीतियों को समझ रहे हैं।
किसान संगठनों के विभाजन से भी सरकार को किसानों का शोषण का अवसर मिला है। भाकियू के तीन गुट हो गये तथा भाकिंसं नाम से चौथा संगठन भी बना है। इन सभी संगठनों को किसानों के हित में एक मंच पर आना चाहिए और किसान हितों की लड़ाई मजबूती से लड़ने की तैयारी करनी चाहिए।
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-जी.एस. चाहल.
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