बंद कमरे की बैठक में सब बदल गया

harpal kamil gajraula nagar panchayat

चौपला के पास ध्वस्त पुलिया के निर्माण के दौरान घटिया सामग्री लगने का पता चलने पर एक सभासद ने जिलाधिकारी से शिकायत की थी। डीएम ने एसडीएम को जांच सौंप दी। जांच हुई, मौके पर जांच अधिकारी पहुंचे। मजेदार बात है कि जांच करने वालों को अधोमानक सामग्री, मानकानुरुप दिखाई देने लगी। यह चमत्कार यूं ही नहीं हो गया था। बंद कमरे में जांचकर्ता, इ.ओ. और ठेकेदार की बैठक से सबकुछ बदल गया था।

निर्माणकर्ताओं से बड़े दोषी जांचकर्ता हैं -यह हम नहीं वह टूटी पुलिस कह रही है जिसके निर्माण के समय उन्हें कोई खामी नहीं दिखाई दी। पुलिया धराशायी होने के बाद नगर पंचायत ठेकेदार तथा जांचकर्ता सभी एक थैली के चट्टे—बट्टे हो गये हैं। यदि जांचकर्ता एक बार भी ईमानदार रवैया अपना लें तो किसी भी नगर पंचायत में भ्रष्टाचार इस हद तक नहीं हो सकता जितना हो रहा है। शिकायत पर उच्च अधिकारी फौरन जांच कराने तो किसी न किसी को भेज देते हैं लेकिन चांदी का जूता लगते की जांचकर्ता की आंखों को अधोमानक भी उचित मानक दिखाई देने लगता है। पुलिया इस बात का ठोस सबूत है।

इस पुलिया का निर्माता भाजपा युवा मोरचा का जिला स्तरीय नेता है। चेयरमेन भाजपा के पूर्व विधायक हैं। अधिकांश ठेके इसीलिए इस ठेकेदार को दिये जाते हैं तथा शिकायतें भी सबसे अधिक इसी की है। दो सभासद संजय अग्रवाल तथा अनिल अग्रवाल सहित कई नागरिकों से ठेकेदार शिकायतों पर उलझ भी चुका है।

कब्रगाह बनते-बनते बची घटिया सामग्री से बनी पुलिया
नगर पंचायत के निर्माण कार्यों में भ्रष्टाचार सभी सीमायें लांघ गया है। निजि स्वार्थ के चलते यहां के चेयरमेन, इ.ओ. और ठेकेदार लोगों को मौत के मुंह में धकेलने से भी बाज नहीं आ रहे।

अधिकांश सभासद भी इस ओर मौन साध गये हैं तथा विरोध के बजाय ऐसी घटनाओं को निमंत्रण देने वालों से सांठगांठ कर चुके हैं।

जांच की मांग करने वाले जो दो-तीन सभासद हैं तो उन्हें भी उस समय घोर निराशा का सामना करना पड़ता है जब जांचकर्ता बंद कमरों में बैठकर भ्रष्टाचारियों को क्लीन चिट देकर निकल जाते हैं।

बीते शनिवार को चौपला के निकट धनौरा रोड के नीचे लगभग चार माह पूर्व बनाई नगर पंचायत की पुलिया एक मिनी ट्रक का भार भी सहन नहीं कर पायी और टूटकर धंस गयी। ट्रक पलट गया। कई लोग मरने से बाल-बाल बचे जबकि दो लोग घायल हुए। इस पुलिया को बनाने में नगर पंचायत के चार लाख रुपयों से अधिक खर्च हुए।

मामूली वजन से ध्वस्त होने वाली पुलिया के निर्माण में लगी सामग्री की पोल खुल गयी है। वैसे भी ओवर ब्रिज के निर्माण कार्य के चलते यहां नाम मात्र का यातायात चलता है। बस या ट्रक आदि का इधर कोई वास्ता ही नहीं। फिर भी पुलिया चार माह भी नहीं टिक सकी। यही घटिया सामग्री का ठोस सबूत है।

ठेकेदार और निर्माण से संतुष्ट होने वाले इ.ओ. तथा संबंधित अभियंता ने लोगों को मौत के मुंह में धकेलने के चार लाख से अधिक रुपये नगर पंचायत के खजाने से खर्च करा दिये। अब उसे दोबारा बनाने की तैयारी शुरु की जानी है। इस बार और भी अधिक डकराने का प्रबंध होगा।

बहाना भी है कि मजबूत पुलिया के लिए ज्यादा पैसा चाहिए इसलिए बड़ा ठेका दिया जायेगा। यही यहां बार-बार हो रहा है न कोई सुनने वाला और न कोई रुकने वाला।

-टाइम्स न्यूज़ गजरौला.

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