
निर्मल फाइबर के प्रबंधकों ने अधिकांश कर्मचारी ठेकेदारों के मार्फत काम पर लगा रखे हैं। ठेकेदार तो बाहरी हैं ही, साथ ही उन्हें स्पष्ट निर्देश है कि दूर-दराज के लोग ही काम पर रखे जायें।
स्थानीय लोगों को काम पर नहीं रखा जाना चाहिए। यही कारण है कि सौ दो सौ किलोमीटर के आसपास का कोई भी कर्मचारी यहां नहीं रखा जाता। यदि कोई स्थानीय व्यक्ति काम के लिए जाता भी है तो नो वेकेंसी कहकर टरका दिया जाता है।
जबकि इस इकाई की स्थापना के समय कहा गया था कि स्थानीय लोगों को प्राथमिकता के आधार पर रोजगार उपलब्ध कराया जायेगा। बाद में इसपर कोई भी ध्यान नहीं दिया गया।
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निर्मल फाइबर और टी.टी. में मजदूरों की जिंदगी का सौदा
इससे चंद कदम दूर तिरुपति टैक्सटाइल्स(टी.टी.) का इससे भी बुरा हाल है। वहां प्लांट के अंदर रुई के बेहद सूक्ष्म रेशों से अनेक श्रमिक फेफड़ों तथा सांस संबंधी बीमारियों के शिकार हो रहे हैं। वे भी दूर-दराज के ठेके पर काम करने वाले लोग हैं। प्रबंधन उनसे किसी को नहीं मिलने देते। औद्योगिक इकाईयों के प्रति अधिकारियों के नरम रुख के कारण वैसे भी उनकी कोई सुनवाई नहीं होती।
दोनों ही इकाईयों के मजदूर असंगठित हैं। प्रबंधन उन्हें संगठित नहीं होने देना चाहता जिससे उनका शोषण जारी है। साथ ही उनके हकों के लिए कोई भी संघर्ष करने वाला नहीं। दुघर्टनाओं को रोकने का प्रबंध करने के बजाय चंद नोटों के दम पर मजदूरों की जिंदगी खरीद लेते हैं प्रबंधक।
-टाइम्स न्यूज़ गजरौला.