हम पर्यावरण के लगातार बढ़ रहे प्रदूषण को उतनी गंभीरता से नहीं ले रहे। यह समस्या केवल किसी एक ही देश की नहीं बल्कि सारा संसार ही पर्यावरण के खतरे से ग्रसित है।
यह वैज्ञानिक अच्छी तरह जान चुके कि यह खतरा मानव ने उत्पन्न किया है और इससे बचाव का प्रयास भी उसे ही करना होगा। ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन को इसके लिए सबसे अधिक दोषी माना गया है। विकसित देश ऐसा करने में सबसे आगे हैं और विकासशील देश भी इसमें विकसित देशों का ही अनुसरण कर रहे हैं।
बार-बार कहा जाता है या प्रचार किया जाता है कि पेड़ व जंगल न काटे जायें बल्कि अधिक से अधिक वृक्षारोपण किया जाये। इसके लिए सरकारें काफी धन खर्च करती हैं। बड़े अधिकारी, नेता कथित समाजसेवी अपने सहायकों द्वारा लगाये एक पेड़ के पास बैठकर अपनी फोटो खिंचवा कर अखबारों में प्रकाशित कर वाह-वाही लूटते हैं। अकेले पेड़ के रोपण में सैकड़ों रुपयों का डीजल, पैट्रोल आदि खर्च किया जाता है। बाद में यह भी कोई देखने नहीं आता कि वह पेड़ जीवित बचा भी या नहीं। जबकि किसान काफी पेड़ अपने खेतों व खाली स्थानों पर रोपते हैं। उनका कहीं नाम तक नहीं आता। वैसे केवल वृक्षारोपण के सहारे ही पर्यावरण की सुरक्षा नहीं हो सकती। पर्यावरण को कई अन्य खतरे भी हैं जिन्हें हम आयेदिन उत्पन्न करते रहते हैं।
प्रतिबंध के बावजूद पॉलिथीन का प्रयोग बहुत बड़ी मात्रा में हो रहा है। दुकानदार लगभग सभी सामान इसी प्रकार के पैकिंग में देते हैं। चाय पीने तक के गिलास और कप आदि भी पॉलिथीन के ही बनाये जा रहे हैं। यह चीज हमारे पर्यावरण के लिए बहुत ही बड़ा खतरा है। सभी दालें तथा कई अन्य खाद्य सामग्रियां भी इसी में पैक की जा रही हैं।
हम सभी काम सरकार से कराना चाहते हैं जबकि हम चाहें तो कई समस्यायें उत्पन्न ही नहीं होंगी.
शहरों से लेकर गांवों तक के क्षेत्र में जहां भी देखो पॉलिथीन के खाली पैक या थैलियां बिखरे पड़े हैं। जगह-जगह कूड़े के ढेरों में यह भरे पड़े हैं। थोड़ी बारिश होते ही नगरों की नालियां कचरे से बंद हो जाती हैं। नालों में यह पदार्थ भरा पड़ा है। लोग इसके लिए नगर पालिका बोर्डों को कोसते हैं लेकिन यह नहीं देखते कि इस समस्या को बढ़ाने वाले हम सभी हैं।
हम सभी काम सरकार से कराना चाहते हैं जबकि हम चाहें तो कई समस्यायें उत्पन्न ही नहीं होंगी। पहली बात तो यह है कि हमें पॉलिथीन का प्रयोग ही नहीं करना चाहिए।
आज आदमी बेहद आरामदायक होता जा रहा है। लोग बाजार से सामान लेने जाते हैं तो उन्हें कपड़े का थैला ले जाने में शर्म आती है या बोझ लगता है। दही, दूध और घी आदि भी पॉलिथीन में लाते हैं। गर्म सब्जी और दाल आदि भी इसी में लाये जा रहे हैं। लोग इसमें कोई आपत्ति के बजाय आराम समझते हैं। यही कारण है कि सारा देश पॉलिथीन के कचरे का भंडार बनता जा रहा है।
पर्यावरण की सुरक्षा के लिए पॉलिथीन को पूरी तरह प्रतिबंधित किया जाना चाहिए। अधिक से अधिक वृक्षारोपण भी किया जाना जरुरी है। हमें इस दिशा में स्वयं सजग होना होगा। सरकार पर भरोसा करने से कुछ नहीं होने वाला।
-गजरौला टाइम्स के लिए हरमिन्दर सिंह.