शिव परमात्मा का कर्मवाचक नाम है जिसका शाब्दिक अर्थ कल्याणकारी है अर्थात् परमात्मा सभी का कल्याण करता है। इसीलिए उसका एक नाम शिव भी है। शिव कोई अलग देवता अथवा परम सत्ता से अलग कोई अलौकिक शक्ति प्राप्त देव नहीं है। पुराणों के रचनकारों और कर्मकांडी पुरोहितवादियों ने शिव को परमात्मा से अलग एक अन्य देव, महादेव या भोला आदि नाम देकर एक ऐसा देवता बना दिया जो अपने बजाय अपने लिंग पूजन से सर्वाधिक प्रसन्न होता है।
शिव लिंग के जलाभिषेक को ही भगवान आशुतोष का जलाभिषेक नाम दे दिया गया। हम परमात्मा की महिमा घटाते-घटाते उसे देवता तक लाये और देवता से उसके शरीर के एक अंग मात्र पर आकर ठहर गये। वह भी बाद में पत्थर का काल्पनिक आकार ही हमने साक्षात परमात्मा मान लिया। उसी रुढ़िवादी सोच पर पत्थर की तरह आजतक जमे हैं।
शिव को छोड़ पत्थर पर सिर फोड़ने को तैयार हैं। शिव के होकर भी शिव से दूर हैं। जिस दिन वास्तविक शिव, उसके सत्य और सुन्दरता का आभास कर लेंगे उसी दिन शिवमय हो जायेंगे।
यह सभी जानते हैं कि सावन माह में घनघोर घटनाओं और वर्षा की फुहारों का प्राकृतिक वातावरण सभी के मन मोर को बरबस आकर्षित करता है। चारों ओर हरियाली और पक्षियों के कलरव का वर्णन हमारे प्राचीन साहित्य में भरा पड़ा है। रीतिकालीन कवियों के साथ ही भक्त कवियों ने अपने भक्तिभाव पूर्ण काव्य में इस माह को आत्मा और परमात्मा के मिलन का सबसे सुखद अवसर बताया है तथा कहा है कि घटाटोप आकाश के बरसते बादलों से सूखे तालाब भी भर गये। ऐसे अवसर पर जो लोग परमात्मा से एकाकार नहीं हो सके उनकी क्या हालत हो रही होगी।
हमारे लोकगीतों में प्रिय-प्रेयसी अपने मिलन के लिए सावन के आने की बेसब्री से प्रतीक्षा करते हैं यथा -'कच्चे नींब की निबौली, सावन जल्दी अइयो रे।’ यह स्वर लहरी आज भी सावन की फुहारों के बीच झूला झूलने वाली युवतियों के मधुर कंठों से निकल कर वातावरण में दूर तक मादक मिठास घोल देती है।
सावन माह को शिव आराधना के लिए इसीलिए महत्वपूर्ण माना गया है कि इस मौसम में सभी एकाकार होना चाहते हैं। चाहें प्रेमी-प्रेयसी अथवा भक्त या भगवान। सावन का विछोह दोनों के लिए ही सर्वथा कष्टकारी और मिलन कल्याणकारी है। इसीलिए उस कल्याणकारी परमात्मा की आराधना का महत्व सावन में और भी बढ़ जाता है। यही वजह है कि उस शिव के शिवत्व के करीब पहुंचने के लिए हम अपनी-अपनी समझ से प्रयास कर रहे हैं। लेकिन वह शिव कोई देहधारी, भांग-धतूरा खाकर नशा करने वाला और लिंग पूजा का अभिलाषी न होकर साक्षात्, पारब्रह्म परमेश्वर है।
-जी.एस.चाहल.