चौदहवां रत्न उर्फ़ बरबादी का सामान

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लगता है चुनाव और शराब, एक-दूसरे के पूरक हो गये हैं। तमाम चुनावी सुधारों को हर बार लागू करने वाले चुनाव आयोग से भी इसपर नियंत्रण नहीं हो रहा। पुलिस और आबकारी विभाग द्वारा इस मौके-मौके यदा-कदा अवैध शराब के आरोपियों को पकड़ा भी जाता है लेकिन वह दोनों विभागों द्वारा चुनाव के मौके पर औपचारिकता निभाने के अलावा कुछ नहीं।

इस समय ग्राम प्रधानों, बीडीसी तथा जिला पंचायत के उम्मीदवारों की ओर से मतदाताओं को रिझाने के लिए समुद्र मंथन के इस चौदहवें रत्न को जमकर पिलाया जा रहा है।

उम्मीदवारों ने सुविधाजनक स्थानों पर अड्डे बना दिये हैं। इसमें हरियाणा मार्का शराब सबसे अधिक चल रही है जो गैरकानूनी तरीके से प्रदेश में लायी जा रही है।

अवैध भट्टियों पर देशी तरीके से बनने वाली शराब भी बुरी तरह प्रयोग में लायी जा रही है। वैसे बीते एक दशक में अंग्रेजी शराब का प्रचलन तेजी से बढ़ा है। अधिकांश लोग उसी की मांग करते हैं तथा उम्मीदवार मांग पूरी भी कर रहे हैं। ग्रामांचलों के इन चुनावों में शराब का खूब शोर है।


लालच बुरी बला है, लोग शराब के नतीजों को अच्छी तरह जानते हुए भी मुफ्त की मिलने पर पीने से बाज नहीं आ रहे। देखा जाये तो आयेदिन होने वाले इन चुनावों ने हमारे समाज में जो सबसे बुरी आदत पैदा की है वह शराब की लत लगाने की ही है।

किशोरावस्था में कदम रख रहे बच्चों को इसकी ओर आकर्षित किया जा रहा है। परिवार का पेट खींचतान कर भरने वालों को इन चुनावों में परोसी जानेवाली शराब ने बरबाद करके रख दिया।

चुनाव के दौरान मुफ्त में मिलती है, वे पीते रहते हैं। चुनाव खत्म होने तक वे इस डायन की गिरफ्त में फंस चुके होते हैं और बाद में जब मन नहीं मानता तो खरीदकर पीनी शुरु कर देते हैं।

उसके बाद पहले ही गरीबी के शिकार इस तबके के युवक बरबादी की राह पर चल पड़ते हैं। घर से बाहर तक ऐसे कई लोग अपराधों को जन्म देते हैं। इसमें उनके बेकसूर परिजन भी मारे जाते हैं।

अब फिर अनगिनत नये पियक्कड़ तैयार कर दिये जायेंगे, या हो जायेंगे लेकिन बिना शराब के चुनाव नहीं होने वाले। इससे कोई बरबाद हो या बरबाद किया जाये, उम्मीदवारों को कुछ सरोकार नहीं। चुनावी आचार संहिता की धारा भी शराब के सामने कुन्द पड़ जाती है।

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-जी.एस. चाहल.
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