शिवसेना के मैदान में आने से भाजपा असहज

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बिहार विधानसभा चुनाव की दुदुंभि बज चुकी। मुख्य मुकाबले में दो गठबंधन हैं। जबकि इन चुनावों के परिणामों को प्रभावित करने के लिए शिव सेना और एआइएमआइएम पार्टी भी चुनाव जंग में कूदने को तैयार है। कई बड़े बिहारी नेता इन दोनों को परायी शादी में अब्दुल्ला बेगाना कहकर महत्वहीन मान रहे हैं। जबकि ये दोनों पार्टियां यदि मेहनत और कुशलता के साथ पचास-पचास सीटों पर उम्मीदवार उतार बैठीं तो बिहार के चुनावी नतीजों को बुरी तरह प्रभावित कर सकती हैं।

असदउद्दीन ओवैसी का कहना है कि वे बिहार के सीमांचल में अपने उम्मीदवार उतारेंगे, बाकि बिहार में ऐसा नहीं करेंगे। वे पिछड़े, दलित और मुस्लिम मतदाताओं से एकजुट होकर अपनी पार्टी के लिए वोट मांगेंगे। इनमें से सभी वर्गों के लोगों को उम्मीदवार भी बनायेंगे।

उधर शिवसेना का कहना है कि वह पचास सीटों पर चुनाव लड़ेगी। पार्टी नेता संजय राउत के मुताबिक भले ही केन्द्र की राजग सरकार के वे घटक दल हैं और महाराष्ट्र में भाजपा के साथ सरकार चला रहे हैं लेकिन बिहार में वे भाजपा से कोई समझौता नहीं करेंगे। वे अकेले अपने दम पर चुनावी मैदान में उतरेंगे। शिवसेना हिन्दुत्व के नाम पर चुनाव लड़ेगी। उसका यह भी कहना है कि वह चुनाव के जरिये बिहार में अपनी शक्ति दिखाना चाहती है।

लगभग डेढ़ सौ सीटों पर भाजपा यहां चुनाव लड़ रही है। ये सभी ऐसी सीटे हैं जहां भाजपा को हिन्दु मतों के धु्रवीकरण की उम्मीद है। यहीं शिवसेना भी पचास सीटों पर हिन्दुत्व के नारे के साथ अपने उम्मीदवार मैदान में लायेगी। इससे स्पष्ट है कि भाजपा के लिए बिहार में उसकी सहयोगी शिवसेना ही सबसे बड़ा खतरा बनने जा रही है। इसका परोक्ष लाभ नीतीश, लालू और कांग्रेस के गठबंधन को होगा। हो सकता है शिवसेना यहां एक-दो सीट भी जीत ले, लेकिन उसकी हार हो या जीत, इससे भाजपा को घाटा उठाना ही होगा। उधर रामविलास पासवान और जीतनराम मांझी की तकरार से भाजपा पहले ही असहज है। एनडीए गठबंधन को जहां मांझी के साथ आने से बल मिला था और उसे महागठबंधन पर भारी माना जाने लगा था, शिवसेना के अचानक मैदान में कूदने से उसे पलीता लगना तय माना जा रहा है। इससे लालू-नीतीश खेमे में खुशी का माहौल है।

एआइएमआइएम के बिहार में चुनाव में कूदने से भाजपा ने जो शांति महसूस की थी वह शिवसेना ने काफूर कर दी।

ओवैसी जिस क्षेत्र से अपने उम्मीदवार खड़ा कर रहे हैं उसे क्षेत्र में मांझी और कांग्रेस दोनों को क्षति पहुंचने की उम्मीद है, बल्कि पासवान को भी इससे हानि हो सकती है। राजद या जदयू की हार-जीत पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ने वाला। बल्कि शिवसेना से इन दोनों को लाभ मिलेगा।

यदि ओवैसी कुछ सीटें जीतने में सफल भी हो गये तब भी उनके विधायक भाजपा विरोधी खेमे को ही समर्थन देंगे। इसलिए भाजपा को जहां शिवसेना के चुनावी जंग में शामिल होने से भारी नुकसान का खतरा है। वहीं ओवैसी से उसके विरोधी गठबंधन को खास नुकसान नहीं होता दिख रहा। बल्कि दोनों से लालू नीतीश गठबंधन को परोक्ष लाभ ही होगा।

यही कारण है कि इन दोनों के मैदान में आने से जहां भाजपा असहज है, वहीं राजद, जदयू खेमे में खुशी का माहौल दिखाई देता है।

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-जी.एस. चाहल. 

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