वार्ड 13 में कावेन्द्र और अबरार में कांटे की टक्कर

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जिला पंचायत के वार्ड-13 में सपा, भाजपा तथा बसपा समर्थित उम्मीदवारों में कांटे की टक्कर मानी जा रही थी लेकिन 17 अक्टूबर को हुए मतदान में अधिकांश मतदान केन्द्रों पर नजर दौड़ाकर क्षेत्र के पुराने चुनावी विश्लेषकों का मानना है कि मुख्य मुकाबला सपा समर्थित कावेन्द्र सिंह तथा अबरार सैफी में ही होने की संभावना है। सैफी सपा के घोषित उम्मीदवार नहीं हैं, लेकिन वे भी स्वयं को सपा उम्मीदवार ही कह कर प्रचार कर रहे हैं।

बसपा उम्मीदवार और भाजपा उम्मीदवारों को देर से मैदान में आने का खामियाजा भुगतना पड़ा है। अभी यहां 29 तारीख को 8 गांवों में मतदान होना है।

कावेन्द्र सिंह की मजबूती के कई कारण बताये जा रहे हैं। उनके पक्ष में सबसे दमदार तर्क यह है कि इसी वार्ड के निवासी अशफाक अली खां का यहां के गांवों में मजबूत जनाधार है। वे खुलकर कावेन्द्र सिंह के साथ मजबूती से खड़े रहे हैं। इससे उन्हें आगामी विधानसभा चुनाव में जाट बाहुल्य क्षेत्र में लाभ मिलेगा। खां हर हाल में कावेन्द्र को विजयी देखना चाहते हैं।

दूसरी मजबूती ब्लॉक प्रमुख पद के कारण कावेन्द्र सिंह ने सभी वर्गों को साथ लेकर चलने का काम किया है। यही वजह है कि वार्ड के सभी तबकों का अच्छा समर्थन उन्हें मिला है। वे हिन्दू-मुस्लिमों को एक साथ लेकर चलने वाले युवा नेता हैं।

मृदु स्वभाव और मिलनसार प्रवृत्ति उनका तीसरा गुण है। पेशेवर नेताओं की तरह वादाखिलाफी से वे हमेशा दूर रहे हैं। उनकी कथनी-करनी में बहुत कम अंतर होता है। वे जानबूझकर कम तथा परिस्थितिजन्य अधिक होता है। अशफाक खां के साथ उनकी सभाओं में सबसे अधिक भीड़ उनके बहुमत की ओर मजबूत संकेत है।

अबरार सैफी के बड़े भाई उमर फारुख सैफी यहां से खड़े सभी मुस्लिम उम्मीदवारों में कद्दावर नेता हैं। वे सपा अल्पसंख्यक मोरचा के प्रदेश सचिव हैं, वे अबरार को सपा समर्थित घोषित नहीं करा पाये। इससे खास फर्क नहीं पड़ता लेकिन पार्टी के एक धड़े का उन्हें भी समर्थन बताया जाता है। फारुख सैफी पूरे जोर से चुनाव लड़ाने में लगे रहे हैं तथा शेष गांवों में वे अभी भी प्रयासरत हैं। जिससे वे लगातार मजबूती की ओर बढ़ रहे हैं। जानकारों का यहां तक कहना है कि कावेन्द्र और अबरार में ही यहां सीधी टक्कर है।

उधर बसपा उम्मीदवार विपिन चौधरी देर से उम्मीदवार बनाये जाने से विफल हो चुके तथा वे अपनी खस्ताहालत के लिए पार्टी को ही दोषी ठहरा रहे हैं। दूसरी ओर बसपा से बाहर किये बागी उम्मीदवार जाफर मलिक भी लड़-झगड़ कर जीतने का प्रयास कर रहे हैं। उनके खिलाफ मारपीट और हमला करने के आरोप में गजरौला थाने में रपट दर्ज कराई है। कई बार विवादित होने से उनके चुनावी प्रचार पर बुरा प्रभाव पड़ा है। यह उनकी सबसे बड़ी कमजोरी है।

पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष इंद्रवती भी जोर आजमाइश में हैं। भाजपा उम्मीदवार और वे भी रंग नहीं जमा पाये। टक्कर कावेन्द्र सिंह अबरार सैफी में ही होने की संभावना है।

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-टाइम्स न्यूज़ हसनपुर.

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