बिजली और वन विभाग ने समय से नहीं बनने दिया पुल

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बिजली और वन विभाग की अनावश्यक रुकावटों के कारण निर्माणाधीन ओवर ब्रिज निश्चित समय के बजाय लम्बे समय में पूरा होगा। यदि ये दोनों विभाग समय से अपना दायित्व पूरा करते तो अबतक ब्रिज पर आवागमन शुरु हो गया होता। जिससे रेलवे लाईन के दोनों ओर आनेजाने वाले लोग एक बड़ी राहत महसूस कर रहे होते। उपरोक्त दोनों विभागों के अधिकारियों के गैर जिम्मेदारान कार्यकलापों से जहां पुल निर्माण की लागत बढ़ेगी वहीं थाना चौराहे से अल्लीपुर चौराहे तक सड़क के दोनों ओर रोजी-रोटी के लिए बैठे सैकड़ों दुकानदारों का कारोबार ठप्प हो गया है। अधिकांश दुकानदार इनमें ऐसे हैं, जिन्होंने एक दशक से अधिक समय में मोटी रकम लगाकर धीरे-धीरे अपना व्यवसाय जमाया था। निमर्णाधीन पुल की देरी ने उनके जमे-जमाये व्यवसाय को ठप्प करके रख दिया है। यहां निजि और किराये की दुकानों में काम करने वाले दोनों ही तरह के लोग हैं।

ओवर ब्रिज समय से न बन्ने के कारण हजारों यात्री वर्षों से परेशान हैं और सैकड़ों दुकानदारों का कारोबार चौपट हो गया है.

यदि समय रहते ब्रिज निर्माण हो जाता है तो मन्द पड़ा व्यापार गति पकड़ने में अधिक समय नहीं होता। इसमें केवल बिजली और वन विभाग के आला अधिकारी ही दोषी नहीं, बल्कि सेतु निगम और लोक निर्माण के नीति नियन्ता भी बराबर के भागीदार हैं। जिस विभाग द्वारा इस ब्रिज का ठेका दिया गया है उसे रेलवे क्रासिंग पर ओवर ब्रिज बनवाने से पहले लोगों के लिए यहां वैकल्पिक मार्ग की व्यवस्था करनी थी। भारी वाहनों के अलावा रोजमर्रा के काम करने वालों के लिए मार्ग सबसे पहले बनाया जाना चाहिए था। यहां ऐसी व्यवस्था के बिना ही सड़क दोनों ओर से बिल्कुल बन्द कर दी गयी। जबकि यहां प्रान्तीय राजमार्ग के यात्री राष्ट्रीय राजमार्ग तक आते-जाते हैं। जो भानपुर फाटक का मार्ग पूरे यातायात के लिए जोड़ा गया, वहां पहले ही भारी भीड़ थी।

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यह तो ठीक है कि एक समस्या के स्थायी समाधान के लिए अल्प समय के लिए बड़ा दर्द भी झेलना पड़ता है, लेकिन जब सरल और बेहतर रास्ता हो तो दर्द देना या झेलना कोई जरुरी थोड़े ही हैं। यहां सारी समस्यायें जानबूझकर उत्पन्न की गयी हैं। उनसे बचना जा सकता था, और समय सीमा में काम करके कुछ दिक्कतों का अल्पीकरण भी हो सकता था।

-टाइम्स न्यूज़ गजरौला.

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