मरीजों को लगायी जा रही धड़ाधड़ बोतलों से हकीकत का सुराग लगता है। उसी के साथ झोलाछाप डॉक्टरों के खिलाफ शोर खूब मचता है। जबकि सेहत महकमे को सब पता है, वह केवल जांच व छोपमारी कर खानापूर्ति कर लेता है।
सिक्के के दूसरे पहलू पर कोई गौर नहीं करता। जो गांव शहरों से दस से बीस किमी. हैं और जहां के ज्यादातर लोगों के पास शहरों तक जाने के उचित साधन नहीं। इसी के साथ वहां कोई सरकारी अस्पताल भी नहीं तथा प्रशिक्षित डिग्रीधारक वहां क्लीनिक किसी भी कीमत पर खोलने को तैयार नहीं। ऐसे में किसी को चोट लगने, मामूली बीमारी होने अथवा रात्री में दर्द आदि की समस्या होने पर यही झोलाछाप गांव वालों के लिए भगवान होते हैं।
ये चिकित्सक अच्छे चिकित्सकों के पास रहकर काफी दवाओं और उनके प्रयोग इंजेक्शन लगाने और ड्रिप आदि का उचित इस्तेमाल सीख जाते हैं। लगभग सभी झोलाछाप अपनी समझ की परिधि और क्षमतानुसार मरीज को उपचार देते हैं। ऐसे एक-दो अपवाद भी हो सकता है जो गंभीर मरीजों को अपनी शक्ति से बाहर होने के बावजूद इलाज देता रहता है।
नगलिया मेव के साईं अस्पताल का स्वामी यही कर रहा है। उसके खिलाफ कार्रवाई जरुरी है। लेकिन सेहत महकमा कुछ भी नहीं कर रहा है।
दरअसल गांवों में यदि झोलाछाप न हो तो 'फर्स्ट ऐड’ आदि के समय से न मिलने पर अधिक मरीजों की हालत खराब हो सकती है जिससे मौतों की संख्या बढ़ सकती है।
जहां सुदूर गांवों में बाढ़ या अन्य मौकों पर बीमारी फैलने पर कोई डॉक्टर जाने तक को तैयार नहीं होता, वहां प्रैक्टिस कर रहे झोलाछाप चिकित्सकों को सरकारी सहायता मुहैया कराई जानी चाहिए। उनके खिलाफ कार्रवाई या सेहत महकमे के आला अफसरों को उनके शोषण का कोई हक नहीं। सिक्के के दूसरे पहलू में बहुत कुछ दर्ज है!
-टाइम्स न्यूज़ अमरोहा.
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