ग्राम पंचायत चुनावों में मतदाताओं को लुभाने और खरीदने के हथकण्डे इस बार कुछ अधिक ही अपनाये गये हैं। निर्वाचन आयोग 70-80 फीसद मतदान से खुश हैं। उसे इसी में भारत के मजबूत जनतंत्र के दर्शन हो जाते हैं। इस बार आयोग की मजबूत रणनीति के बजाय पंचायत चुनावों में कई गैर कानूनी तरीके उम्मीदवारों द्वारा अपनाये गये। लगभग सभी उम्मीदवारों द्वारा इस सिस्टम को अपनाने के कारण आयोग ने इसे नजरअंदाज कर दिया अथवा निचले स्तर पर पुलिस और छोटे कर्मचारियों की उम्मीदवारों से मजबूत सांठगांठ के कारण उच्च अधिकारी इसमें कुछ नहीं कर पाये।
इस बार मतदाताओं और उम्मीदवारों की सोच में पिछले सभी चुनावों से हटकर बदलाव देखा गया। अधिकांश उम्मीदवारों ने निर्वाचन आयोग द्वारा खर्च सीमा की बिल्कुल परवाह नहीं की। शराब चुनाव जीतने का सबसे बड़ा हथियार माना गया। कोई गांव ऐसा होगा जहां इस पेय का उपयोग न किया गया हो। इसी के साथ मांस, मिठाईयां और फल भी जम कर बांटे गये। एक-दो स्थानों पर मामूली पकड़ा-पकड़ी के अलावा चुनाव प्रबंधन ने इस दिशा में कोई सख्ती नहीं की।
पकौड़े और ताजा जलेबियों के लिए गांवों में कई जगह भट्टियां तक चल गयीं। महिलाओं को आभूषण तथा कंबल और साड़ियां भी बांटे गये। उम्मीदवारों ने जीत के लिए जमकर पैसा बहाया। मतदाता भी सभी से लेते गये। उनका कहना था कि न लें तो उम्मीदवार सोचता है कि यह उसे वोट नहीं देगा, इस शंका से बचने के लिए सभी से लिया लेकिन वोट जिसे चाहा उसे दिया। अब तेरह दिसम्बर में ही पता चलेगा कि कितनों का खाया और कितनों को जिताया।
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-जी.एस. चाहल.
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