ग्राम पंचायत चुनाव में प्रधान पद के लिए अमरोहा जिले में ढाइ सौ से अधिक महिला चुनी गयी हैं। उनमें से कई निरक्षर हैं। कई ऐसी हैं जो अपना नाम लिखना ही जानती हैं या थोड़ा बहुत पढ़ भी लेती हैं।
अधिकतर देखा गया है कि महिलाओं के हाथ में जब भी बागडोर आयी है तो उनके पति, पिता, बेटे या घर के अन्य सदस्य उनके स्थान पर कुर्सी का लाभ उठाते रहे हैं।
नवनिर्वाचित महिला प्रधान कहती हैं कि वे गांव का विकास करने के लिए तत्पर हैं। अधिकतर महिलायें विकास की बात तो करती हैं, लेकिन विकास कैसे किया जायेगा इसकी रणनीति उनके पास नहीं है।
चुनाव जीतने के बाद जब एक महिला प्रधान से पूछा गया कि वे अपने क्षेत्र के बारे में जानती हैं तो वे चुप्पी साध गयी। कई को तो अपने जिले के डीएम का नाम तक नहीं मालूम।
एक महिला प्रधान के पति ने बताया कि ग्राम पंचायत के विकास की बात हमने चुनाव के दौरान भी कही थी। उसके लिए हमने लोगों से वादा किया था। सड़क, खड़ंजा, नालियां आदि का निर्माण किया जायेगा। जहां भी विकास नहीं हुआ, कराया जायेगा। लोगों की उम्मीदों पर खरा उतरा जायेगा।
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दरअसल महिला प्रधान के परिवार के सदस्य ही अधिकतर उनके पद का उपयोग करते हैं। सभी फैसले प्रायः वे ही लेते हैं। एक तरह से महिला प्रधान 'रबर स्टांप’ की तरह कार्य करती हैं।
कुछ महिलायें हालांकि अपने दम पर काम करने में सक्षम हैं। वे अपने पद का सम्मान करती हैं। वे विकास की नई परिभाषा गढ़ती हैं।
महिलाओं को घूंघट की ओट से बाहर आकर राजनीतिक क्षेत्र में नयी इबारत लिखने के लिए तैयार रहना होगा, तभी वे पुरुषों से कंधा मिलाकर चल सकती हैं।
-ममता शर्मा.
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