अनुपम खेर पद्म भूषण मिलने पर फूले नहीं सम रहे। उनकी खुशी बनती है। उन्होंने पिछले दिनों असहिष्णुता के विरोध में अभियान चलाया था उसका सिला उन्हें मिल गया, ऐसा कहने की 'हिमाकत' उनके विरोधी कर सकते हैं। वे खुलकर अनुपम खैर ही नहीं उन सभी को कह रहे हैं जिन्होंने भाजपा के अभियानों में बढ़चढ़कर हिस्सा लिया है। उनमें एक नाम अजय देवगन का है जो बिहार में भाजपा के लिए प्रचार कर चुके हैं।
लोगों ने हमें वह यात्रा भी याद दिला दी जिसमें अनुपम खैर, सपना अवस्थी और मधुर भंडारकर शामिल थे। इन तीनों को पद्म पुरस्कार मिले हैं।
सबसे मजेदार अनुपम खेर साहब का रहा जिन्होंने कुछ साल पहले ऐसे सम्मान को 'मजाक’ बताया था। उस समय उनके लिए 'अंगूर खट्टे’ वाली स्थिति थी। जब अंगूर खट्टे थे, अनुपम खेर तब कुछ भी बोल गये थे, लेकिन अब सरकार भी बदल गयी। तब की सरकार और अबकी सरकार में तो खेर को फर्क दिख गया होगा।
सोशल मीडिया पर सबसे अधिक मजाक अनुपम खेर का बनाया गया। शायद अनुपम साहब उन दिनों में जी रहे हैं जब लोग कुछ भी बोलकर साफ बच निकलते थे यह कहते हुए कि हमने नहीं कहा। आज तो सबकुछ रिकॉर्डिड है।
ताजा पुरस्कारों की घोषणा पर बहुत लोगों ने उंगली खड़ी की है। उन्हें लगता है कि सरकार की कृपा से किसी का भी भला हो सकता है। ये बात बिल्कुल सही है कि कृपा ऐरे-गैरों पर नहीं होती, मगर उन्हें अपनी बारी का इंतजार तो करना पड़ता है।
अगली सरकार यदि भाजपा की नहीं आये तो क्या असहिष्णुता जैसे मुद्दे पर इस सरकार में पाये सम्मान पाने वाले अपने अवार्ड वापिस करेंगे?