'सर्दी ने कोहरे के साथ मिलकर एक साजिश रची है और लोगों को रजाई में घरों में छिपाने की हिमाकत की है।’ इस वाक्य को लिखने के बाद मैंने पुरानी किताब के पन्नों को उलटना शुरु किया। कुछ देर ऐसा करता रहा, मगर बाद में नींद आनी जायज थी।
सर्दी के कारण लोग घरों में जरुर छिपने को मजबूर हुए हैं। वे सर्दी-सर्दी करते भी पाये गये। अलाव जलाते भी मिले। चाय की चुस्की लेते हुए भी भाप उड़ाते हुए मिले। कंबलों में लिपटे, कोट में, जैकेट में, और दौड़ते-भागते भी मिले।
लगता है राजनीति को ठंड का भय नहीं। वह बेबाक है। वह चतुर और चालाक है। अपना इंतजाम पहले ही करके चलती है। जरुर वह मौसम से मिलीभगत किये रहती है।
मैंने मोजे पहने, कुर्सी पर पुराने कंबल की तह बनाकर उसे सोफा बनाने की कोशिश की। पर ठंड से इलाज मुमकिन न हुआ।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी राज्य दर राज्य दिन में सैकड़ों मीलों का सफर तय कर रहे हैं। विदेश जाते तो हजारों मील हो जाता।
दिल्ली के मुख्यमंत्री स्याही के छींटे लेने खुले आसमान में ऑड-इवन की सफलता के लिए दिल्ली वासियों को धन्यवाद कर रहे हैं। मनीष सिसोदिया और आशुतोष भाजपा और दिल्ली पुलिस को कोस रहे हैं।
साजिशें हो रही हैं, हत्या का रिहर्सल हो रहा है, वे झूठ बोल रहे हैं, उनका यह स्टंट है, बगैरह-बगैरह बिना सिर-पैर की करने में जुटे हैं राजनीति करने वाले।
कोहरा कह रहा है,'मौका मिलने की देर है, आता हूं।’
सर्दी कह रही है,'तुम पास आये, हम मुस्कराये।’
दोनों का गठबंधन देश पर हावी है, पर राजनीति के सामने यह भी फेल है।
राजनीति चलेगी बिना रुके, बिना थमे और खराब मौसम में तो और गति के साथ।