गन्ना समितियों के संस्थापकों में से एक हमारे जनपद के गजरौला विकास खंड के गांव छीतरा निवासी मुंशी निर्मल सिंह थे। उन्होंने मुझे बताया था कि गन्ना किसानों को मिल मालिकों के शोषण से मुक्ति दिलाने के लिए हमने किसानों की समिति बनाने का फैसला लिया था।
मुंशी जी ने अपने दो साथियों के साथ बैठक कर समिति बनायी थी। तब एक आना मन गन्ना मूल्य था। मुंशी जी ने बताया था कि समिति ने तत्कालीन अधिकारियों से लखनऊ में बात की थी तथा गन्ना मूल्य दो आना करवाया था।
कालांतर में समितियों का मौजूदा स्वरुप अस्तित्व में आया। मिलों पर समिति के नाम मात्र के खर्च का नाम मात्र का भार डाला गया था। आजकल उत्तर प्रदेश में समितियों को सात रुपये कुन्टल के आसपास कमीशन मिलता है जिसे सरकार तीन रुपये कर रही है।
जहां इन समितियों के संचालन का उद्देश्य पहले किसानों का हित साधन था, इसके विपरीत किसानों के गन्ने से कटने वाले भारी भरकम कमीशन के बावजूद समितियां घाटे में बतायी जाती हैं। समिति के पदों पर कब्जा करने के लिए राजनीतिक इस्तेमाल होता रहता है और धन बल का प्रयोग प्रचलन में है। किसानों की सेवा के लिए गठित की गयी ये समितियां राजनैतिक प्रतिद्वंदिता के अखाड़े बनती जा रही हैं; यही कारण है कि जिसका सत्ता पर कब्जा होता है, वही लोग इसपर अपने चहेतों को स्थापित कर राजनीतिक रोटियां सेकते हैं।
यही वजह है, मिल मालिक गन्ना किसानों का दोहन करने पर तुले हैं तथा समिति संचालक खामोश हैं। या ज्ञापन आदि देने तक सीमित हैं। आधे से अधिक गन्ना बिकने के बावजूद अभी तक किसानों का एक भी रुपया भुगतान न किया जाना इन समितियों के औचित्य को नकारने के लिए काफी है।