लखनऊ नहीं मिला तो भाजपा से दिल्ली भी जायेगी

narendra-modi-pm-india-lucknow

एक वर्ष बाद होने वाले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के परिणाम देश की भावी राजनैतिक स्थिति तय करने में निर्णायक सिद्ध होंगे। यह सब देश की सत्ता पर मौजूद भारतीय जनता पार्टी सहित दूसरे दलों के नेता भली-भांति जानते हैं। देश के सबसे बड़े इस राज्य में अपनी सत्ता कायम करने के लिए जहां भाजपा, बसपा और कांग्रेस जीतोड़ कोशिश करेंगे, वहीं यहां सत्ता पर मौजूद सपा अपनी कुर्सी बचाये रखने के लिए एड़ी चोटी की कोशिश करेगी। इनके अलावा यहां के चुनावी परिणामों को प्रभावित करने में इस बार बिहार के दिग्गज नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव की जोड़ी तथा ओवैसी की एमआइएम पार्टी भी शामिल रहेगी। ऐसे में यहां किसकी सरकार बन सकती है, अभी कुछ नहीं कहा जा सकता।

उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव के नेतृत्व में सपा सरकार से राज्य की जनता खासकर किसान और मजदूर बहुत नाराज हैं। सरकारी दफ्तरों में बढ़ते भ्रष्टाचार ने आम आदमी का जीवन दूभर कर दिया है। विकास योजनाओं के लिए आये धन की जिस तरह बंदरबांट हो रही है, उसे लोग अच्छी तरह समझ रहे हैं। पब्लिक की जेब से निकला धन चन्द इलाकों के विकास के नाम पर लुटाया जा रहा है। कानून व्यवस्था का बुरा हाल है। बड़े-बड़े अखबारों और टीवी चैनलों को विज्ञापनों के बहाने मालामाल कर विकास का झूठा प्रचार किया जा रहा है। यादव सिंह जैसे महाभ्रष्ट अधिकारी को सीबीआई जांच से बचाने का सरकार ने जिस प्रकार प्रयास किया, उसी से उसकी नीतियों और नीयत का पता चलता है। राज्य के यादव राज में न जाने कितने यादव सिंह जैसे अधिकारी और नेता होंगे जो राज्य की अर्थव्यवस्था को घुन की तरह चाट रहे होंगे। सबकुछ जानते हुए भी इस तरह के मामलों में जांच तक नहीं की जाती। प्रमाण के लिए गजरौला में नगर पंचायत के इ.ओ. की कुर्सी पर लगातार 13 वर्षों से भी अधिक समय से एक ही व्यक्ति बैठा है जबकि अधिकतम पांच वर्षों तक ही एक स्थान पर रहने का नियम है। भ्रष्टाचार और तरह-तरह के आरोपों के बावजूद उसका स्थानांतरण तक नहीं किया गया।

akhilesh-yadav-cm-up

सपा शासन में सबसे अधिक परेशान कियान हैं। उनके उत्पाद उचित मूल्य पर नहीं बिक रहे। गन्न बिकने के बावजूद उसका भुगतान तो क्या कीमत तक तय करने की फुर्सत सरकार को नहीं है। मुख्यमंत्री और उनके मंत्री फिल्मी सितारों को महोत्सव के बहाने आमंत्रित कर उनपर जनता के खून पसीने की कमाई लुटाने में मस्त हैं। और मजेदार बात है कि वे अपने पिता को प्रधानमंत्री बनवाने की मांग जनता से कर रहे हैं। आने दीजिये विधानसभा चुनाव जनता किसे क्या बनायेगी, पता लग जायेगा। उत्तर प्रदेश में सत्ता विरोधी लहर है। वह किसके पक्ष में जायेगी, चुनावी प्रबंधन पर भी बहुत कुछ निर्भर होगा?

लोकसभा चुनाव में भाजपा के पक्ष तथा दूसरे सभी दलों के खिलाफ यहां लहर बनी थी, वह खत्म हो चुकी है। केन्द्र की सरकार के झूठे वायदों ने लोगों में भाजपा के प्रति सपा से भी अधिक नाराजगी पैदा कर दी है। किसान, मजदूर, व्यापारी तथा बेरोजगार नवयुवक भाजपा सरकार से निराश हो चुके, अब यदि प्रधानमंत्री लाख आश्वासन दें तब भी लोग उनपर भरोसा नहीं करना चाहते।

दिल्ली और बिहार जैसे हालात यहां भी दोहराये जायें तो किसी संदेह की गुंजाइश नहीं। मौजूदा हालात के लिए लोग नरेन्द्र मोदी को ही जुम्मेदार मान रहे हैं। उनका कहना है कि उन्होंने भाजपा को नहीं बल्कि मोदी को वोट दिया था, जबकि कुर्सी मिलते ही वे जनता की सुनने के बजाये अपने मन की ही गाने में लगे हैं। दो साल होने वाले हैं एक बार तो उन्हें इस अंतराल में हमारी भी सुननी चाहिए थी। जिन किसानों को वे फसल की लागत पर पचास फीसदी मुनाफा दिलाने की बात करते थे, मोदी शासन की छह फसलों में लागत तक नहीं निकली। गन्ना आधे से ज्यादा बिक गया और अभी तक भाव भी तय नहीं हुआ। किसानों के साथ इतना बड़ा छल आजतक नहीं हुआ। ऐसे में भला किसान भाजपा को क्यों वोट देगा?

पंचायत चुनावों में भाजपा फाइट से बाहर रही जबकि सपा का सत्ता में होने के बावजूद बसपा से हर जगह मुकाबला रहा। यह स्थिति बसपा की मजबूती का प्रत्यक्ष प्रमाण है। यदि बहनजी गंभीरता से चुनावी प्रबंधन और जातीय समीकरण के आधार पर उम्मीदवार उतारने में सफल रहीं तो भाजपा तथा सपा के सत्ता विरोधी माहौल का लाभ उठाने में उन्हें खासा दिक्कत नहीं होगी।

उधर कांग्रेस, बिहार के महागठबंधन के घटक दलों के साथ रालोद को लाने में सफल रही तो यह गठबंधन भी सत्ता तक पहुंच सकता है। कुछ भी हो लेकिन यह निश्चित है, यदि भाजपा लखनऊ तक नहीं पहुंच पाती, तो यह निश्चित भी है कि दिल्ली भी उसके हाथ से निकल जायेगी?

-जी.एस. चाहल.

जी.एस. चाहल के सभी लेख पढ़ें >>